Book Title: Chidkay Ki Aradhana
Author(s): Jaganmal Sethi
Publisher: Umradevi Jaganmal Sethi

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Page 75
________________ चिकाय की आराधना/73 'अनन्त सुख स्वरूपोऽहम् ' है सुख अनन्त अद्भुत, निज आतमा में । कैसा भरा यह सुधा घट, शाशता में ।। सुखाभास जग में, तुम को डुबोवे । क्षायिक अनन्त सुख, मुक्तिपुरी ले जावे।। हे भव्य आत्मन्! तू सदाकाल इस आनन्दमयी शुद्धात्मा में, अपनी दिव्य काया में रतिवन्त हो और इसी में हमेशा सन्तुष्ट हो और इसी से सदा तृप्त बन। अन्य कोई पदार्थ कल्याणकारी नहीं है। भगवान चिकाय और इसका अनुभव ही मुक्ति के कारण हैं। अन्य कुछ तेरा नहीं है। भगवान चिकाय का अनुभव करने तुझे अक्षय, अनन्त सुख प्राप्त होगा । इसी सुख को प्राप्त करने का प्रतिदिन प्रयत्न कर।. हे भव्य! तुम स्वयं अनन्त सुख के स्वामी हो, परन्तु वर्तमान में उस सुख से वंचित हो रहे हो । मोहनीय कर्म ने तुम्हारे अनन्त सुख को आच्छादित कर रखा है। निज जीवास्तिकाय के ध्यान से मोहनीय कर्म का क्षय होते ही अनन्त सुख स्वयं से ही प्राप्त होगा। तुम्हारा सुख तुम्हारी दिव्यदेह में है, परद्रव्यों में तुम्हारा सुख नहीं है, ऐसा प्रथम निर्णय करो। ऐसा निर्णय कर परद्रव्यों का लक्ष्य छोड़कर निज दिव्यदेह का अंतर्दृष्टि से लक्ष्य करो। इन्द्रियों से उत्पन्न सुख सुखाभास है, दुःख है। इसके पीछे दुःखों का साम्राज्य है, अनन्त संसार है। आत्मसुख अतीन्द्रिय है, अनन्त है, तुम्हारी स्वाभाविक अवस्था है। आत्मा का सुख आकुलता से रहित है। जो सुख आत्माश्रित है, जिस सुख के साथ कभी दुःख का लेश नहीं, वही आत्मा का यथार्थ सुख है। अतः मैं बाह्य पदार्थो में सुख बुद्धि का त्याग कर शाश्वत सुख की प्राप्ति हेतु सुख स्वभावी निज चिकाया की शरण प्राप्त करता हूँ।

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