Book Title: Chidkay Ki Aradhana
Author(s): Jaganmal Sethi
Publisher: Umradevi Jaganmal Sethi

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Page 99
________________ चिदकाय की आरधाना ही मोक्ष का द्वार है। चिद चिदकाय की आरधाना ही मोक्ष का द्वार है। चिद चिद याही नरपिंडमैं विराजै त्रिभुवन थिति, चिन चित याहीमैं त्रिविधि-परिनामरूप सृष्टि है। याहीमैं करमकी उपाधि दुख दावानल, ____ याहीमैं समाधि सुख वारिदकी वृष्टि है।। याहीमैं करतार करतुतिहीमैं विभूति, यामैं भोग याहीमैं वियोग यामैं घृष्टि है। याहीमैं विलास सब गर्भित गुपतरूप, ताहीकौं प्रगट जाके अंतर सुदृष्टि है।। समयसार नाटक, बंध द्वार,श्लोक 46 'इसी मनुष्य शरीर में तीन लोक प्रमाण निज चिद्काय स्थित है, इसी में शुभोपयोग अशुभोपयोग और शुद्धोपयोग ये तीन प्रकार के परिणाम हैं, इसी में कर्म की उपाधि जनित दुःखरूप अग्नि है, इसी में निज चिद्काय के ध्यानरूप सुख की मेघवृष्टि है, इसी में कर्म का कर्ता आत्मा है, इसी में इसकी क्रिया है, इसी में इसकी आनन्दरूप विभूति है, इसी में कर्म का भोग या वियोग है, इसी में भले-बुरे गुणों का परिणमन है और इसी देह में सर्व विलास गुप्तरूप गर्भित है; परन्तु जिनके अंतर सुदृष्टि है, उन्हीं को यह विलास प्रगट होता है।' अंतर – दृष्टि लखाउ, निज सरूपको आचरन। ए परमातम भाउ, शिव कारन येई सदा।। समयसार नाटक, पुण्य- पाप एकत्वद्वार, श्लोक 10 हे भव्य जीवो! अपने मनुष्य शरीर का मूल्य जानो । नेत्र बंद कर अंतर्दृष्टि कर इस मनुष्य शरीर में विराजमान सर्व विलास की धारक निज चिद्काय का अनुभव करो, इसमें रति करो, इसमें ही संतोष धारण करो और इसी से तृप्ति का अनुभव करो । तुम्हें अवश्य उत्तम सुखरूप मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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