Book Title: Chidkay Ki Aradhana
Author(s): Jaganmal Sethi
Publisher: Umradevi Jaganmal Sethi

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Page 90
________________ 88/चिद्काय की आराधना 'निश्चय पंचाचार स्वरूपोऽहम्' सकल सिद्धि दातार हैं, निश्चय पंचाचार। तिन की प्राप्ति हेतु आत्मा, वेष दिगम्बर धार।। मेरी आत्मा स्वभाव से निश्चय दर्शनाचार, निश्चय ज्ञानाचार, निश्चय चारित्राचार, निश्चय तपाचार और निश्चय वीर्याचार स्वरूप है। __ हे भव्य! जैसे सिद्ध भगवान की आत्मा निश्चय पंचाचार से पूर्ण है, वैसे ही तेरा आत्मा भी निश्चय पंचाचार स्वरूप है। अपने निश्चय पंचाचार स्वरूप को पर्याय में प्रगट करने के लिये अपनी दिव्यकाय का सदा अनुभव करो। ___ परम उपेक्षा संयमी दिगम्बर साधु शुद्धात्मा की आराधना के अतिरिक्त सभी अनाचार को छोड़कर सहज चैतन्य के विलास लक्षण वाले निरंजन निज परमात्वतत्त्व की भावना रूप आचार में सहज वैराग्य भावना से तन्मय रूप हुआ स्थिर भाव को करता है। वह तपोधन निश्चय पंचाचार का आचरण करने वाला होता है। हे भव्य! तुम्हारा आत्मा भी सिद्ध भगवान के समान क्षायिक दर्शन, क्षायिक ज्ञान, क्षायिक चारित्र, क्षायिक सुख और क्षायिक वीर्य स्वरूप है। अन्तर मात्र इतना है उन्होंने ध्यान के द्वारा निज चिद्काय का परिमार्जन कर लिया है, अष्टविध कर्म से रहित कर लिया है और तुमने करना है। आत्मदर्शन से ही भूतकाल में सिद्ध हो चुके हैं, वर्तमान में हो रहे हैं और . भविष्य में होंगे। मैं संसार के मोहजाल को छोड़कर व्यवहार पंचाचार को अंगीकार करता हूँ तथा निश्चय पंचाचार का स्वामी बन अपनी आत्मा में अपनी आत्मा के द्वारा स्थिर होकर पर्याय में पवित्र होता हूँ। .. — मैं भव के दुःखों का नाश करने के लिये दुःखों का नाश करने के स्वभाव वाली अपनी चिद्काय का आश्रय करता हूँ।

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