Book Title: Chidkay Ki Aradhana
Author(s): Jaganmal Sethi
Publisher: Umradevi Jaganmal Sethi

View full book text
Previous | Next

Page 87
________________ चिकाय की आराधना / 85 'स्वात्मोपलब्धि स्वरूपोऽहम्' सिद्ध शुद्ध निज आतम लब्धि होवे । तब कर्ममूल चेतन संसार खोवे।। सिद्ध समान मम आतम नित्य होवे । है भावना बस यही कब मुक्ति होवे । । जिस प्रकार सिद्ध भगवान को आत्मोपलब्धि हुई है, उसी प्रकार शुद्धनय से मैं भी आत्मोपलब्धि स्वरूप हूँ। आत्मा की उपलब्धि होने पर जैसा उनका स्वरूप प्रगट हुआ है, वैसा ही मेरा स्वरूप है। हे मुक्ति के पथिक! जैसे कर्मबंधन से मुक्त, सर्व विभाव भावों से रहित सिद्धात्मा हैं, वैसे ही तुम हो। वे सिद्धात्मा जन्म, मरण, क्षुधा, तृषा आदि सर्व दोषों से रहित हैं, वही स्वरूप तुम्हारा है। ऐसा दृढ श्रद्धान करो । आत्मोपलब्धि के लिये प्रथम जिन्होंने आत्मोपलब्धि की है, ऐसे सिद्धों की आराधना करो । मैं मुक्ति का राही उन्हीं सिद्धात्माओं के चरण चिन्हों पर चलकर स्वात्मोपलब्धि को शीघ्र प्राप्त करूँ, ऐसी नित्य भावना करता हूँ, क्योंकि मै तद्रूप हूँ। हे जीव! जैसी तेरी मति होगी उसी अनुसार तेरी गति होगी। जो मति तेरे चैतन्यस्वरूप भगवान आत्मा के सन्मुख न रहकर परद्रव्यों के सन्मुख होगी तो तुझे बार-बार मरकर संसार की चारो गतियों में भ्रमण करना पड़ेगा। कहा भी है 'जैसी मति वैसी गति, जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि । ' भव्य जीव ! सर्व प्रकार के विकल्प जालों को छोड़कर सिद्ध समान अपनी चिट्ठाय का नेत्र बंदकर सदा ध्यान करो। देव दर्शन और सर्व आगम ज्ञान का फल निज चिकाय का ध्यान करना है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100