Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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पोयूषयषिणी टोका र ५६ भगयतो धर्मदेशना
“जह णरगा गम्मती, जे णरगा जा य वेयणा णरए। सारीरमाणसाडं दुक्खाइ तिरिक्खजोणीए ॥१॥ माणुस्मं च अणिच, वाहि-जरा-मरण-वेयणा-पउर। देवे य देवलोए, देविढि देवसोवाड ॥२॥
इ यानिगायामि । 'जह परगा गम्मती' यथा नरका गम्यन्त-जापर्यन प्रकारेण नरका =नरकस्थानानि गम्यते प्रायते, 'जे परगा' ये नरका -यद्रूपा नरका = नारकिग सति, 'जा य वेयणा णरए' याश्च वेदना नरके या =याम्यो वेदना = यातनाश्च नरके भवति, तसर्व कथयताति पूर्वेगा वय । 'सारीरमाणसाइ दुक्खाइ तिरिक्खजोणीए' शारारमानसानि दु सानि तिर्यग्योन्याम्-यथा च शरीरसम्बन्धीनि मन सम्बधानि च दुःखानि भवन्ति प्राणिनामिति शेपस्तथा भगनान परिकथयति ॥ १ ॥ एर 'माणुस्स च अणिच्च वाहि-जरा-मरण-वेयणा-पउर' मानुष्यञ्चाऽनित्य न्याधि-जरा-मरण-वेदना-प्रचुरम्-च्याधयो-जरादय जरा वार्धक,मरण प्रसिद्ध, वेदना = गानोष्णादिस्वरूपा , प्रचुरा =विशदा यस्मिस्तादृशम् , अतएव अनिय क्षणभडगुर मानुप्य-मनुष्यभर परिकथयति । 'देवे य देवलोए देविडहिं देवसोरखाद' देवान् च देवलोकान् दरद्धि देवसौग्व्यानि तथा देवान , च पुन दवलोशन , दद्धि देवसमृद्धि, दवसौरयानि देवसम्बन्धीनि सुखानि कथयतीति शेष ॥२॥ एता येव नरकार्दानि तिरिक्वजोगीए) जीव जिस प्रकार नरका में जाते है, और वहा जैसे नारका है, एव उहें जिस प्रकार का वेदना भोगनी पडता है यह सन प्रभु न (आटक्खइ) बतलाया। तिर्यगति में पहुँचने पर इस जाव को जितने भी शारीरिक व मानसिक कष्ट भोगन पडते है, यह भी भगनानन स्पष्ट किया । (माणुस्स च अणिच वाहि-जरा मरण-वेयगा पउर) यह मानवपयाय अनिय है, व्याधि, जरा, मरण एव वेदना से प्रचुर-भरा है । (देवे य G न रे (जह णरगा गम्मती जे णरगा जा य वेयणा णरण | सारीग्माणसाइ दुक्याइ तिरिक्सजोणीए) १०१२ मारे नोभा तय छ, अने त्यावा નારકી હોય છે, તેમજ તેમને જે પ્રકારની વેદના ભેગવવી પડે છે, એ બધુ प्रभुमे (आइसिइ) तान्यु तिय य-गतिमा पहायता मा ७ २८। શારીરિક તેમજ માનસિક દુ ખ હોય છે તે બધા ભેગવવા પડે છે, એ પણ मनपाने पर व्यु (माणुस्स च अणिच वाहि-नरा-मरण यणा-पउर) मा