Book Title: Uttaradhyayan Sutram Part 02
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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औपपातिको अक्खसोयप्पमाणमेतपि जल सयराहं उत्तरित्तए,णण्णत्थअद्धाणगमणेण । अम्मडस्सणं णो कप्पा सगड वा एव तं चेव भाणियव्वणण्णस्थ एगाए गंगामट्टियाए । अम्मडस्सणं परिव्वायगस्स बायगम्स' अम्बडस्य सल परित्राजकस्य, 'णो कप्पइ अ वसोयप्पमागमेत्तपि जल सयराह उत्तरित्तए' अक्षस्रोत प्रमाणमात्रमपि-अक्षस्रोत =चक्रधू प्रवेशरध्र तदेव प्रमाण तेन प्रमाणेन माना=परिमाणम् अवगाहनतो यस्य तत्तथा तत्, चक्रस्य छिद्रपर्यन्त जलमपि 'सयराह ' गीत्र, 'सयराह ' इतिदशीयशब्द , 'उत्तरित्तए' उत्तरीतु नो क्पते-तत्र प्रवेष्टु न कल्पते, तस्मान्न्यूनपरिमाण जलमुत्तरोतुं कन्पत इति भाव । “णण्णत्य अद्धाणगमणेण' नाऽन्यत्राऽधगमनात्-अध्वगमनादन्यताऽय निषेध --अध्वगमने तु जलमुत्तरीतु कल्पते, 'अम्मडस्स ण णो कप्पइ सगड पा एव त चेव भाणियच जाव' अम्बडस्य खलु नो कपते शफट वा एव तदेव भणितव्य यावत्, यावच्छब्देन 'सदमा णिय वा दुरूहित्ताण गच्छित्तए' इत्यारभ्य 'कुकुमेण वा गाय अणुलिपित्तए । इति पर्यत पाठोऽस्यैवोत्तरार्धगताष्टादशमूरगतोऽनुसन्धेय इति । 'गण्णत्य एगाए गगामट्टियाए' समय मार्ग में (सयराह) अकस्मात् (अक्खसोयप्पमाणमेत्तपि) गादी की धुरा प्रमाण जल आ जाय तो भी उसमे (उत्तरित्तए णो कप्पइ) उतरना नहीं कल्पता है । (णण्णत्थ अद्धाणगमणेण) परतु विहार करते हुए अन्य रास्ता नहीं हो तो बात अलग! ( अम्मडस्स ण णो कप्पइ सगड वा एव त चेव भाणियव्य जाव) इसी तरह इस अम्बड परिवाजक को शफट आदि पर चढना भी कल्पता नहीं है। यहा 'यावत्' शब्द से 'सदमाणिय वा दुरूहित्ता ण गमित्तए' यहा से लेकर 'कुकुमेण वा गाय अणुलि पित्तए' यहा तक का पाठ इसी आगम के उत्तरार्ध के अठारहवे सूत्र से समझ लेना ४२ती १मते भागमा (सयराह ) मरभात (अक्खसोयप्पमाणमेत्तपि) गाडीना घासराना प्रभाए र re सावी य त पशु तेभा (उत्तरित्तए णो कप्पइ)
२७ ४.५तु नथी (णण्णत्थ अद्धाणगमणेण) ५२तु विडार ४२ता ३२ भीन्न ते न य तt and gी (अम्मडरस ण णो कप्पइ सगड वा एव त चेव भाणियव जाव) की शते ते सम्म परिवाने २८ (31) माहि ५२ ४ ५ ६५तु नथी मडी (यावत् ) शण्या 'सदमाणिय दुरूहित्ता ग गन्छित्तए' माथी ने 'कुकुमेण चा गाय अणुलिंपित्तए' मही सुधीना पा मा मागभाना उत्तराधना मदारमा सूत्रथा cell at नये (गण्णत्थ