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जैन धर्म बालोष (प्रथम भाग) से० प० लालन, अनु० दरयावसिंह सोषिया, प्र० धर्मचन्द मुनीम, पालीताण, भा० हि० पृ० ५६, १० १३१३,
प्रा० प्रथम ।
जैन धर्म बाल बोध (द्वितीय भाग) से० प० लालन, अनु० दरयाव सिंह सोधिया, प्र० धर्मचन्द मुनीम, पालीताण, भा० हि०, पृ० ६४, व० १६१२:
प्रा० प्रथम ।
जैनधर्म परिचय -- ले० प० अजितकुमार, प्र० चम्पावती जैन पुस्तकमाला अम्बाला; भाषा हिन्दी; पृष्ठ ४६, व० १९३०, प्रा० प्रथम |
जैनधर्म भजनमाला - सग्र० ऐ० धर्मसागर, प्र० पन्नालाल मोदी झाबुआ, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ६३, व १६४१, ० प्रथम ।
जैन धर्म मीमांसा - प्रथम भाग - ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त; प्र० सत्य समाज ग्रन्थमाला बम्बई, भाषा हिन्दी, पृष्ठ ३२८, व० १६३६, प्र ० प्रथम । जैन धर्ममामांसा (द्वितीय भाग) - ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त, प्र० सत्यसमाज ग्रन्थमाला बम्बई, भा० हि०; पृ० ४१२, १० १९४० ०
● प्रथम ।
जैन धर्म मीमांसा - (तृतीय भाग) -- ले० प० दरबारीलाल सत्यभक्त, प्र० संत्य समाज ग्रन्थमाला बम्बई, मा० हि०; पृ० ३६७; व० १९४२, ० प्रथम । जैन धर्म में अहिंसा - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० मूलचन्द किशनदास कापडिया सूरत भा० ०ि, पृ० १४३, १० १६३६ प्रा० प्रथम ।
जैन धर्म में देव और पुरुषार्थ - ले० ब्र० शीतल प्रसाद, प्र० दिग० जैन पुस्तकालय सूरत; भा० हि०, पृ० १६७, व० १९४१, ० प्रथम |
जैन धर्म श्रेष्ठ क्यों है- ले० मिलापचन्द कटारिया, प्र० अनेकान्त प्रभाकर मडल देहली, भा० हि०, पृ० ३१, व० १९३१ ।
जैन धर्म सिद्धान्त - ले० शिवव्रत लाल वर्मन, प्र० वीर कार्यालय बिजनौर, भा० हि०, पृ० ८८ १० १६२८ प्रा० प्रथम ।
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