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( १) एकाउन्टटेन्ट पटियाला; प्र. बुद, पृ० ६२, ५०, १९२७. पा० मव्वल ।
जैन मत नास्तिक मत नहीं है और जैन फिलासफा के छः जौहर(मि० हर्बर्टवारन के अंग्रेजी लेख का तरडुमा)-अनु० चन्दूलाल जैन अस्तर प्र० प्रेम बर्षिनी जैन सभा नजफगढ, पृ. ३२, ३० १९२३, मा० प्रवल ।
मैन मत सार या हिन्दु मत इख्तसार-ले० ला० सुमेरचन्द जैन, प्र० खुद० पटियाला, पृ० ३२२, व १६१६, मा० अब्वल ।।
जैन रतन माला के तीसरे और चौथे रतन-ले० ला० नेमचन्द जैन, प्र० खुद देहली, पृ० १६, २० १९२५ ।
जैन वृतान्त कल्पुद्रम-ले० शिवबरतलान बर्मन एम० ए०, प्र. दुद लाहौर, पृ०४८।
जैन वैराग्य शतक-अनु० मा० बिहारी नाल बी० ए०, प्रद बुलन्दशहर, पृ० २४, २० १६०३ ।
जैन साधुओं की बरहनगी (बरिस्टर चम्पतराय की अंग्रजी किताब का तरजुमा)-अनु० बा. भोलानाथ मुख्तार; प्र० जन मित्रमंडल देहली, पृ० १८, व० १९३१, आ० अन्बल ।
जैनियों को नास्तिक कहना भूल है-ले० ह सराज शास्त्री, अनु. हुकमचन्द जैनी, प्र० मात्मानन्द जन ट्रक सोसाइटी अम्बाला शहर, पृ० ३५१ व० १९२४ ।
जैनी आस्तिक है-ले० नत्पराम, पृ० मात्मानन्द जन ट्रेक्ट सोसाइटी अम्बाला शहर, १०४०, व० १९१५ ।
जैनी नास्तिक नहीं-ले० डी० सी० प्रोसवाल, प्र० मन्त्री महावीर जन लायब्रेरी स्यालकोट, पृ० १६, २० १९१६ ।
जेनी नास्तिक नहीं हैं इसपर विचार-ले. नत्थूराम जनी, प्र. खुर बौरा, पृ० ३४।
जैनला-ले. वैरिस्टर चम्पतराय, प्रकाशक होरालाल पन्ना मान जैन देहली, मूल्य १)
हवती नया-ले० दीवान अज समन्दरी, प्र. जैन सोसाइटी लाहौर,