Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobetirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पद्म
॥२१॥
सो मानो अपना पति जो चन्द्रमा उसे रावण के मुखकर जीता जान भागगए और रावणकी हथेली
और पमथली अत्यन्त लाल और रावणकी स्त्रियों को अत्यन्त लाल जानकर लज्जावान होय कमलों के समूह भी छिप गए मानो यह वर्षा ऋतु स्त्री समान है विजुरी तेई कटिमेखला जो इन्द्र धनुष वह वस्त्राभूषण पयोधर जे मेघ वेही पयोधर कहिये कुच और गवण महा मनोहर केतकी वास तथापद्मनी स्त्रियों के शरीर की सुगन्ध इत्यादि सर्व सुगन्ध अपने शरीर की सुगन्धता कर जीतता भया जिस के सुगन्थ श्वासरूप पवन के खेंचे भ्रमरों के समूह मुंज्जार करते भए गंगाका तट जो अतिमनोहर है वहां डेरा कर राक्णने वर्षाऋतु पुर्ण करी कैसा है गंगाका तट जहां हरित तृण शोभे हैं नाना प्रकार के पुष्पों की सुगन्धता फैल रही है बड़े बड़े वृक्ष सोभे हैं कैसा है रावण जगत् का बन्धु कहिये हितु है। अति सुखसे चातुरमास्य पुर्णकिया । हे श्रेणिक!जे पुण्याधिकारी मनुष्य हैं तिनकानामश्रवणकर सर्वलोक नमस्कार करे हैं। और सुन्दर स्त्रिों के समुह स्वयमेव ओय वरें हैं और अश्वर्य के निवास परम प्रगटहोय हैं। उन के तेजकर सुर्य भी शीतल होय है। मैसा जान कर आज्ञामान संशय बोह पुणय के प्रवन्ध में यत्न करो। इति पत्नपुराण भाषा ववनिका में एकादश ११ पर्व समाप्तम् ॥ ___अथानन्तर रावण मंत्रियोंसे विचार करनेलगा। अहो मंत्रियो! यह अपनी कन्या कृतचित्रा कौन को परनावें इंद्र से संग्राम में जीतनेका निश्चय नहीं इस लिये पुत्री का पाणिग्रहण मंगल कार्य प्रथम करना योग्य है । तब रावण को पुत्री के विवाह की चिंता में तत्पर जाम कर राजा हरिवाहन ने अपना पुत्र निकट बुलाया सो हारिवाहन के पुत्र को अति मुन्दगकार विनयवान् देख कर पुत्रीके
For Private and Personal Use Only