Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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पद्म पुराण
बुद्धिमान् काली घटा समान है प्रभा जिसकी और यह चित्ररथ महागुणवान् महासुन्दर है और यह ॥४३६ ॥ हर्मुख नामा कुमार अति मनोहर महातेजस्वी है यह श्रीसंजय, यह जय, यह भानु, यह सुप्रभ,
यह मंदिर, यह बुध, यह विशाल, यह श्रीघर, यह बीर, यह बन्धु, यह भद्रवल, यह मयूरकुमारइत्यादि अनेक राजकुमार महापराक्रमी महासौभाग्यवान् निर्मलवंश के उपजे चन्द्रमासमानान्ति जिनकी महा गुणवान् भूषणों के घरणहारे परमउत्साह रूप महाविनयवन्त महाज्ञानी महाचतुर चाय इकट्ठे भएहैं और यह संकाशपुर का नाथ इसके हस्ती पर्वत समान और तुरंग महाश्रेष्ठ और रथ महामनोग्य और योघा अद्भुत पराक्रम के धारी और यह सुरपुर का राजा, यह रन्ध्र पुर का राजा, यह नंदनीकपुरका राजा यह कुन्दपुर का अतिपति यह मगधदेशका राजेन्द्र यह कंपिल्य नगरका नरपति इनमें कैंयक इक्ष्वाकुवंशी और कैक नागवंशी और कैयक सोमवंशी और कैयक उग्रवंशी और कैयक हरिवंशी और कैयक क्रूरवंशी इत्यादि महा गुणवन्त जे राजा सुनिए हैं वे सर्व ते रेअर्थ आये हैं सो इनके मध्य जो पुरुष बज्रवर्त धनुष् को चढावे उसेतूंवर जो पुरुषों में श्रेष्ठ होयगा उसी से यह कार्य होयगा इस भान्ति खोजे ने कही और राजा जनक ने सबको अनुक्रम से धनुष की ओर पठाए, सोगए सुन्दर है रूप जिनका सो सव ही धनुष को देख कंपायमान होते भए धनुष में से सर्व ओर अग्नि की ज्वाला बिजुली समान निकसे और माया भयानक सर्प फुंकार करें तब कैयक तो कानों पर हाथघर भागे और कैयक धनुष को देखकरदूर ही कीले से ठाढ़े रहे कांपे हैं समस्त अंग जिनके और मुंद गए हैं नेत्र जिन के और कैयक ज्वर से ब्याकुल भए और कईयक धरती पर गिर पड़े और कईयक ऐसे भएजो बोलन सकें और कईक मूर्खको
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