Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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अथानन्तर मुनि अमृततुल्य परम शांति वचन कहतेभए हे कल्याणरूपिणी हेपुत्री हमारे कर्मानुपण सार सब कुशल है ये सर्वही जीव अपने अपने कर्मोका फल भोगे हैं देखो कर्मोंकी विचित्रता यह गजा
महेन्द्रकी पुत्री अपराध रहित कुटुम्ब के लोगों ने काढ़ी है सो मुनि बड़े ज्ञानी विना कहे सर्व वृत्तान्त के जाननहारे तिनको नमस्कार कर बसंतमाला पूछती भई हे नाथ कौन कारण से भरतार इस से बहुत दिन उदास रहे फिर कौन कारण अनुरागी भए और यह महासुख योग्य वनमें कौन कारणसे दखको प्राप्त भई कौन मन्दभागी इसके गर्भ में आया जिसे इसको जीवनका शंसय भया तव स्वामी अमित गति तीनज्ञान के धारक सर्ववृत्तान्त यथार्थ कहते भए, यही महापुरुषों की वृति है जो परायाउपकार करें मुनि बसंतमाला से कहे हैं हे पत्री इसके गर्भ विषे उत्तम पुरुष पाया है सो प्रथम तो जिस कारण से यह अंजनी ऐसे दुःख को प्राप्त भई जो पूर्व भव में पापका आचरणकिया सो सुन । जंबुद्धीप मे भरथ नामा क्षत्र वहां मन्दिर नमा नगर वहां प्रियनंदी नाम गृहस्थी उसकेजाया नाम स्त्रीऔर दमयन्त नाम पुत्र था सो महासौभाग्य संयुक्त कल्याण रूप जे दया क्षमा शील संपादिगुण बेई हैं आभूषण जिसके एक समय बसन्तऋतुमें नन्दनवन तुल्य जो बन वहां नगर के लोग क्रीडाको गए दमयन्त ने भी अपने मित्रों सहित बहुत क्रीढ़ा करी, अबीरादि सुगंधोंसे सुगन्धितहैशरीर जिसका और कुण्डलादि श्राभूषणों से शोभायमान सो उसने उसही समयमें महामुनि देखे कैसे हैं मुनि अम्बर कहिये आकाश सोई है अंबर कहिये वस्त्र जिनके तपही है धन जिनका और ध्यान स्वाध्याय श्रादि जे क्रिया उनमें उद्यमी सो यह दमयंत महा देदीप्यमान क्रीड़ा करते जे अपने मित्र तिनको छोड़ मुनियोंकी मण्डलीमें गया बन्दनाकर ।
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