Book Title: Padmapuran Bhasha
Author(s): Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
Publisher: Digambar Jain Granth Pracharak Pustakalay
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प्रश्न
॥५॥
शब्द सुनकर नगरीके लोक परचकका श्रागम जान अति ब्याकुलभए, जैसे लंकामें अंगदके प्रवेशसे । अतिव्याकुलता भईथी तैसे मथुरा में व्याकुलताभई । कईएक कायर हृदयकी धरनहारी स्त्रीथीं तिन के भयकर गर्भपात होयगये, और कैयक महाशूरंबीर कलकलाट शब्द सुनतत्काल सिंहकी न्याई उठे,शत्रुधन राजमंदिरगया आयुधशाला अपने हाथकरलीनी औरस्रो वालक आदिजे नगरीके लोक अतित्रासकोप्राप्त भये थे तिन को महामधुर वचन कर धीर्य बन्धाया कि यह श्रीराम का रज्य है यहां किसी कोदुःखनहीं तव नगरी के लोग त्रासरहित भये और शत्रुघ्नको मथुरा विषे आया सुन राजा मधु महाकोप कर उपयन से नगर को आया सो मथुरा विषे शत्रुघ्न के सुभटों की रक्षा कर प्रवेश न कर सका जैसे मुनिके हृदय में मोह प्रवेश न कर सके, नाना प्रकार के उपाय कर प्रवेश न पायो और त्रिशल से भी रहित भया तथापि महा अभिमानी मधुने शत्रुघन से संधि न करी यद्ध ही को उद्यमी भया, तब शत्रुघन के योधा युद्ध को निकसे दोनों सेवा समुद्र समान तिनमें परस्पर युद्ध भया, रथों के तथा हारियों के तथा घोड़ों के असवार परस्पर युद्ध करते भए और परस्पर पयादे भिड़े नानाप्रकार के प्रायुधों के धारक महासमर्थ नाना प्रकार श्रायुधों कर युद्ध करते भए उस समय पर सेनाके गर्वकान सहता संता कृतांतवक्र सेनापति पर सेना में प्रवेश करता भया नहीं निवारी जाय गति जिसकी वां रणक्रीडावरे है। जैसे स्वयम्भ रमणउद्यान में इन्द्र क्रीड़ा करे, तब मधुका पुत्र लवणार्णवकुमार इसे देख युद्धके अर्थ प्रायो
अपने बाणों रूप मेघ कर कृतांतवक रूप पर्वत को बाछादित करता भया, और कृतांतवक्र भी प्राशी | विष तुल्य वाणों कर उसके बाण छेदता भया, और धरती आकाश को अपने बाणों कर व्याप्त करता
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