Book Title: Muni Sammelan Vikram Samvat 1969 Year 1912 Author(s): Hiralal Sharma Publisher: Hirachand Sancheti tatha Lala Chunilal Duggad View full book textPage 4
________________ सभापतिजीके बैठनेके बाद देशदेशांतरासे आये हुए अन्य महात्माभी यथा निर्णित स्थानोंपर बैठ गये. . इस समयकी शोभा वास्तविकमें ही कुछ अनूठीथी. इस दृश्यको उपमित करने के लिये संभव है कि, कविकुल तिलकोंके घरमेंभी कोई शब्द न निकलेंगे. मंगलाचरण. प्रारंभमें मुनि परिषदको निर्विघ्न समाप्तिके लिये देवस्तुति और गुरुस्तुति की गई. मुनिसंमेलनके उद्देशपर मुनिराज श्रीवल्लभ विजयजीका व्याख्यान. सभापतिजीकी आज्ञासे मुनिराज श्रीवल्लभविजयजीने यात्रामें अनेक कष्ट सहन करके देश देशांतरोंसे आये हुए मुनिराजोंको सादर अभिमुख कर कहा कि, महाशयो ! आज जो आपलोग यहांपर एकत्रित हुए हैं इसका हेतु क्या है ? क्या यह नवीन ही शैली है या पहेलेभी ऐसे सम्मेलन हुआ करतेथे ? इत्यादि प्रश्नोंका मनुप्योंके हृदयमें उठना एक स्वाभाविक बात है. इस बातके विवेचन करनेसे पहले यह कहना अवश्य उचित होगा . कि, यह परिषद केवल साधुओंकी ही है. इसमें अन्य किसीको सिवाय साधुके बोलनेका या दखल देनेका सर्वथा अधिकार नहीं, यह बात ध्यानमें रहे. यह सभा किस लिये की गई है ? इसका उद्देश क्या है ?Page Navigation
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