Book Title: Kushalchandrasuripatta Prashasti
Author(s): Manichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
Publisher: Gopalchandra Jain
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( २८ ) संसारकूपनिपतज्जनरज्जवे च
तुभ्यं नमः परमपूरुषपुण्डरीक ? ॥१९६॥ तुभ्यं नमोऽखिलविपत्तिनिकुञ्जदन्तिने
तुभ्यं नमो भुवनवांछितकल्पभूरुहे । तुभ्यं नमः स्मरकरीन्द्रभिदा मृगद्विषे
तुज नमः गभदारितने ॥१०॥ नमोस्तु तुभ्यं पुरुषोत्तमाय वा
स्वयम्भुवे वा परमेष्ठिनेऽथवा अगम्यरूपाय विशुद्धयोगिनां
नमोस्तु तुभ्यं सुगताय शंभवे ॥१९८॥ पारं स्वयंभुरमणांबुराशैः
सम्प्राप्नुवानोवियदध्वनोऽन्तम् । संपश्यमानो प्यथवा महौजाः
स्तोतुं किमीश ! गुणांस्तवार्हन् ! ॥१९९।। त्रैलोक्यसाम्राज्यरमानुभाविनो
भवंति दासाः खलु यस्य वज्रिणः । तथाप्यहोय्यद्भुत वीतरागतां
विभ्रद् स कस्त्वं न हि कस्य चित्रकृत् ॥२०॥
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