Book Title: Kushalchandrasuripatta Prashasti
Author(s): Manichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
Publisher: Gopalchandra Jain

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Page 52
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्रीः ॥ “जैन बिन्दु वृत्तिः” -मूलकर्तावैदिक धर्माचार्य श्रीकाष्ठजिह्वा स्वामीजी महाराज -वृत्तिकारश्रीपूज्यवर जैनाचार्य श्रीबालचन्द्रसूरिजी महाराज ॐकारं हृदये ध्यात्वा, नत्वा च गुरु पत्कजं । जैन बिन्दोविवरणं, संक्षेपेण करोम्यहम् ॥१॥ "जयति जैन गेह" "जैनगेह" याने "जैनदर्शन" जयति याने सर्व से उत्कृष्टता से पर्तो, वह कैसा है, जहां परम धर्म का मेघ बरष सा है, और श्वेतांबर जैन धर्म वालों का उज्वल धर्म से ही उज्वल पट है, और जीव दया में हितकारी देह है, क्युंकि उस धर्म की आम्नाय मुनियों ने दयामूल बनाई है, इसमें संदेह नहीं है ॥१॥ इन्द्रादिक देवों के सूत्रों में जो अर्थ भिन्न-भिन्न एकांत पक्ष कर लिखा है, वह सब जिनमत में “स्याद्वाद" भाव से संगृहीत है। उसी को दयालु महापुरुषों ने भाषा रच के लोकों का पटल अंधकार को मिटाया है॥२॥ और उस मत में ईश्वर के प्रतिबिंब याने मूर्ति को बहुत स्नेह घरके पूजते हैं, इस वास्ते इस मतवालों को जो कोई और याने नास्तिक वगेरे दूषित नाम कहते है, उनके मुख में धूलि है, ॥३॥ क्युकि श्रुतिका सिद्धांत "अहिंसा" है, सर्व मत का यह रस For Private And Personal Use Only

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