Book Title: Kushalchandrasuripatta Prashasti
Author(s): Manichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
Publisher: Gopalchandra Jain

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Page 62
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) “वाद विवाद छोड़ साधन कर" वाद विवाद को छोड़, और साधन कर, तब कुछ लज्जत मिलेगी, नहीं तो कुत्ते की तरह भूक भूक के एक दिन मर जावेगा, ॥१॥किसी मत का वाद आज तक खतम हुअा हो तो दिखलावो, घर घर सभी मत जारी है, कौन किस को मिटा सकता है ॥२॥ क्यों कि मति से मत होता है, बुद्धि विलास जिधर दौड़ता है, उधर ही बात बढ़ाता है। यद्यपि अपनी बात को वृथा समझी तो भी हठवाद से मत को नहीं हटावेगा ॥३॥ बाद नाम वृथा का है, ऐसा कोई एक महापुरुष के ही मन में आता है। वादीजन अरिहंत देव को मन में कभी भाता नहीं, क्योंकि अरिहंत वीतराग है, उन्होंने राग, द्वेष, को शत्रु समझ के जीता है, और वाद राग द्वेष से होता है। इस वास्ते वादी पुरुष अरिहंत के शत्रु राग द्वेष को स्थान देने से कभी उनके मन में अच्छा लगेगा नहीं ॥ ४ ॥ न्यून का वाद है, पूर्ण को है नहीं। "तपो भूमि उज्जैन पुरी में" तपो भूमि, याने तपस्या करने को भूमि उज्जैनपुरी है। वहां श्री पद्मावती देवी का बन है, पंचरंगी कमलों का सरोवर है । सोई पंचरंग पद्मावती का शरीर है॥ १॥ लाल रंग के हाथ पांव के तलीये है, स्तन हरित है, पोत याने स्वर्ण वर्ण मुख है, श्याम नेत्र है। दृष्टि के कोण श्वेत है, तन में जिसके बड़ी सुगंधी महकती है ॥२॥ सुगंध जल अंबर पत्रों करके भषा जिसकी है, रसिक भ्रमर जहां गुंज रहे हैं, परमहंस पदकमल के उपासक मीनवत् चंचल जो मन, अथवा कंदर्प उसकी या उससे जो समाधि याने चित्त ध्येय वस्तु पर स्थिर करना इसके करनेवालों का समुदाय जहां है ॥३॥ तपस्वी लोक जिस देवी के सिर के भूषण समान है. श्राप स्वयं तपस्विनी स्थिर मनवाली है। देवेन्द्र प्रमुख देव जिसके सेवक हैं, For Private And Personal Use Only

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