Book Title: Kushalchandrasuripatta Prashasti
Author(s): Manichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
Publisher: Gopalchandra Jain

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४९ ) करता नहीं ॥६॥ जिसने इतना समझा, वह संसार के पार उतर गया, और वह मालिक के, याने ईश्वर के साथ नित्य विहार करेगा, ॥७॥ देव ऋषि याने नारद मुनि ने यह भक्ति सेवा का मार्ग सिखाया है । इस में छोटे बड़े का सब का निर्वाह है ॥ ८ ॥ ब्रह्मावचन-- "ज्ञान अज्ञान के मिलन सोई जगत" ज्ञान अज्ञान का मिलना, याने तात्विक शुद्ध ज्ञान का नहीं होना. यही जगत है। क्यों कि मिलाप से ही जगत का स्वरूप प्रकट दीखता है, जैसे शुक्र और रूधिर के संयोग से, बच्चा पैदा होता है, इसीसे चराचर जगत का नाम है। ऐसा सामवेद का मत सुन के मनरूपी मयूर हर्षित होता है ॥ १॥ ईश्वर का प्रतिबिंब जो शान है, सो ही जगत है, और ज्ञान का प्रतिबिंब सर्व वस्तु क्रिया है। ज्ञान विना जगत नहीं है, जैसे घोर निद्रा में स्वप्न नहीं होता, यह ऋग्वेद का मत सुखरूपी मेह बरसता है ॥२॥ इस नाना प्रकार के जगत का हेतु कर्म है, और कम से ही उत्पत्ति, और मरण है, ऐसा यजुर्वेद कहता है । स्वभाव, गुण, काल हैं, सो कर्म के अनुसार होकर जगत की विचित्रता का हेतु है। और जो बिना हेतु जगत को कहते हैं, वे अज्ञान धरते हैं ॥ ३॥ ज्ञान प्रतिबिंब जानने से सब बनता है। ऐसा अथर्षण कहता है। मर्म पाये विगर मूढ तरसते हैं। जगत की गति ब्रह्मदेव ने ऐसी कही है. जिसके वास्ते मुनिजन बहुत वर्षों तक श्रम करते हैं ॥४॥ विष्णु सूत्र में ___"जगत में पूरा सौदा है" अरे जीव ! सोच जगत में कैसा बराबरी का सौदा है, जैसा तुम जगत से हो, ऐसा ही जगत तुम से है। याने नेकी से नेकी For Private And Personal Use Only

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