Book Title: Kushalchandrasuripatta Prashasti
Author(s): Manichandraji Maharaj, Kashtjivashreeji Maharaj, Balchandrasuri
Publisher: Gopalchandra Jain

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Page 60
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५० ) है, बदी से बदी है, कोई पैदल चलता है, और किसी के कंचन मणि रत्न जटित हौदा है। कोई निश्चित है, कोई बड़ी फिकर में है यह सब का कारण वही है कि, जैसा जिसने किया है, वैसा ही उसको भोगना पड़ता है। यह रहस्य जो नहीं समझे वही मूर्ख है ॥२॥ जैसे रास्ते की धूल को चलने वाला जब पांव से रौंदता है, तब वह धूलि भी उसके माथे चढ़ती है, इसी तरह सर्वभावों को लखना चाहिये, उसकुं नहीं परखे सो सोदाई है ॥ ३॥ जबर है सो अवर को मारता है। जैसे विष जीवों को मारता है। और विषमर्दनी औषधी विष को भी मारती है ॥ ४॥ वासुदेव ने यह जीव गति दिखाई, पतित जो हैं सो नहीं बूझते हैं ॥५॥ शिवसूत्र में ___ "जगत में होय रही है क्या बहार०" जगत में क्या बहार हो रही है, कोई निगाहदार होगा, सो देखेगा, मालिक जो सच्चिदानंद, निज प्रात्मा.या ईश्वर,जो हुक्म करता है, मन भी उसी रास्ते चलता है। और वही भाव भागे धरता है। यह रोजगार लग रहा है ॥१॥ मन जब खद मालिक बनता है तब दुख सुख में जायके सनता है। अपनी औकात की छान करता नहीं, तब सिर पर बड़ा भार कर्मों का वा सांसारिक कामों का उठाता है॥२॥ जब मालिक दूसरा है, ये भाव मन गहता है तब सब की गाली मार सहता है। याने क्रोध करता नहीं, और किसी से कुछ आसा रखता नहीं, इसी राह से पार संसार से जाते हैं ॥ ३ ॥ सब में एक नूर है, याने सब की आत्मा तुल्य है, रंग रंग का अलग अलग देह बना है, महादेव ने ऐसा भाव जैन मत का सार मथके कहा है॥४॥ 'जुगत अति दयालुन कि." जैन धर्मप्रवर्तक बड़े दयालु थे, उनकी जुगति मेरे मन भाय For Private And Personal Use Only

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