Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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सवधी और दूसरा कृष्ण से मवधित । इसी प्रकार की रचना द्रोणाचार्य के गिप्य सूराचार्यकृत 'नेमिनाथ चरित्र' भी है।
इनके अतिरिक्त और भी अनेक ग्रन्थो के नाम गिनाए जा सकते हैं। देशज भाषाओ मे भी इसी प्रकार ग्रन्थ रचना होती रही।
आधुनिक युग की शोध प्रधान रचनाओ मे-~पडित सुखलालजी का 'चार तीर्थकर', अगरचन्द नाट्टा का 'प्राचीन जैन ग्रन्थो मे श्रीकृष्ण', श्रीचन्द रामपुरिया का 'अर्हत अरिष्टनेमि और वासुदेव श्रीकृष्ण,' देवेन्द्र मुनि शास्त्री का 'भगवान अरिष्टनेमि और कर्मयोगी श्रीकृष्ण,' महावीर कोटिया का जैन कृष्ण माहित्य में श्रीकृष्ण' तथा प्रो० हीरालाल रसिकदास कापडिया का 'श्रीकृष्ण अने जैन साहित्य' आदि उल्लेखनीय हैं।
उक्त वर्णन से यह स्पष्ट होता है कि श्रीकृष्ण सवधी जैन साहित्य यदि वैदिक माहित्य की तुलना में अधिक नहीं है तो कम भी नही है ।
जैन और वैदिक परपरा के कृष्ण चरित्र को तुलना माम्य होते हुए भी जैन और वैदिक परपराओ के कृष्ण चरित्र की घटनाओ मे कुछ अन्तर है ।
(१) वैदिक परपरा के अनुसार श्रीकृष्ण जरासव को स्वय नहीं मारते वरन् मीम द्वारा मल्लयुद्ध मे उसकी मृत्यु कराते है। कारण यह बताया गया है कि उसने अनेक राजाओ को वलि देने के लिए वन्दी बना रखा था। जवकि जैन परपरा मे जरासध ही स्वय युद्ध करने आता है और युद्ध मे इसका अत कृष्ण स्वय अपने चक्र से करते है ।
(२) शिशुपाल वध कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ मे होता है जवकि जैन परपरा मे वह जरासंध का सहयोगी बनकर युद्ध करता है और रणक्षेत्र मे ही वह धराशायी हो जाता है।
(३) वैदिक परपरा कौरव-पाडव युद्ध-महाभारत का युद्ध-स्वतत्र युद्ध मानती है जिसके नायक एक ओर दुर्योधन आदि कौरव थे और दूसरी ओर युधिष्ठिर आदि पाडव । कृष्ण इममे पाडवो की ओर वे नीति निर्धारक रहते हैं, वे स्वय प्रत्यक्ष रूप से कोई भाग नही लेते । केवल अर्जुन का रथ सचालन करते हैं। यही अर्जुन का मोह नाश करने के लिए गीता का उपदेश देते है