Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ [ ढ ] कर्ता के वश है वह निमित्त कारण सात नय से दिखाते है: (१) संसारानुयायी जीव को जिन प्रतिमा को देखने से अरिहंत का स्मरण होता है अथवा जिन वंदन कू जीव की सन्मुखता होती है इसलिये सन्मखता का निमित्त वह नैगमनय निमित्त कारणंपणा है। : (२) जिन प्रतिमा के देखने से सर्व गुण का संग्रह होता है। साधकता की चेतनादि सर्व का संग्रह उस तत्त्वता की अद्भुतता के सन्मुख होता है, वह संग्रह नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है। . (३) वंदन नमनादिक साधक व्यवहार का निमित्त वह व्यवहार नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है। (४) तत्व ईहा रूप उपयोग स्मरणे का निमित्त वह ऋजु सूत्र नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है। (५) संपूर्ण अरिहंतपणे का उपयोग से जो उपादान इस निमित्त से तत्त्व साधन में परिणमा वह शब्द नय थापना का निमित्त है, समकिती आदि जीवों को इसलिये शब्द नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है। (६) अनेक तरह से चेतन के वीर्य का परिणाम सर्व साधनता के सन्मुख हुई वह समभिरूट नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है । (७) इस जिन थापना का कारण पाय कर तत्त्व की रुचि, तत्त्व में रमणता करके शुद्ध शुक्ल ध्यान में परिणमे वह संपूर्ण निमित्त कारणता पा करके उपादान की पूर्ण कारणता उत्पन्न हुई वह एवं मूत नय निमित्त कारण जिन प्रतिमा है। निमित्त कारण का यह धर्म है जो उपादान को कारणपणे प्राय करे, और उपादान कारण वह कार्य पणे नीपजे यह मर्यादा है (दृष्टांत) घड़े का उपादान कारण शुद्ध मिट्टी, उसको चक्र, कुंभार, जल, डोरी, लकड़ी ये निमित्त कारण, घड़ा बनने रूप कार्यपणे परणमाता है इस प्रकार सात नय से सिद्ध निमित्त कारण रूप जिन प्रतिमा भव्य जीव रूप उपादान कारण को शुक्ल ध्यान ध्याते निर्वाणदि कार्य निपजाता है। इसलिये जिन प्रतिमा मोक्ष का निमित्त कारण है उसमें शय्यं भव भट्ट को शब्द नग्र पर्यंत निमित्त कारण लिन प्रतिमा- हुई,

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89