Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 69
________________ प्राचीन वेद के बिगड़ने का इतिहास । ४५ के आठ पुत्र पृथुवसु १, चित्रवसु २, वासव ३, शक्क ४, विभावसु ५, विश्ववस ६, शूर ७, महाशूर ८, ये अनुक्रम गद्दी पर बैठे, उनों आठों को व्यंतर देवतों ने मार दिया, तव सुवसु नाम का नवमा पुत्र उहां से भाग कर नागपुर चला गया और दशमा वृहध्वज नामा पुत्र भागकर मथुरा में चला गया, मथुरा में राज्य करने लगा, इस की संतानों में यदु नाम राजा बहुत प्रसिद्ध हुआ, इस वास्ते हरिवंश का नाम छूट गया, यदुवंश प्रसिद्ध हुआ, जो विद्यमान समय माटी बजते हैं, यदु राजा के शूर नाम पुत्र हुआ उस सूर के दो पुत्र हुए, बड़ा शौरी, छोटा सुबीर, बाप के पीछे शौरी राजा हुआ, शौरी ने मथुरा का राज्य तो सुवीर को देकर आप कुशावर्च देश में अपणे नाम का शौरीपुर नगर वसा के राजधानी वनाई, शौरी का बेटा अंधकवृष्णि आदि पुत्र हुए, अंधकवृष्णि के दश पुत्र हुए १ समुद्रविजय, २ अक्षोम्य, ३ स्तिमित, ४ सागर, ५ हिमवान, ६ अचल, ७ धरण, ८ पूर्ण, अभिचन्द्र, १० वसुदेव । उनों में समुद्रविजय का बड़ा बेटा अरिष्टनेमि जो जैनधर्म में २२ में तीर्थकर हुए, जिस का नाम ब्राह्मण लोक भी दोनों वख्त सन्ध्या करते जपते हैं, शिवताति अरिष्टनेमिः, स्वस्ति वाचन में भी है और वसुदेव के बेटे बड़े प्रतापी कृष्ण वासुदेव जिसको जैनधर्मी ईश्वर कोटि के जीवों में गिनते हैं, दूसरे बलभद्रजी भये। तथा सुवीर का पुत्र मोजककृष्णि, भोजकवृष्णि का उग्रसेन, उग्रसेन का पुत्र कंस हुआ, वसुराजा का एक बेटा सुवसु जो भाग के नागपुर गया था, उस का पुत्र वृहद्रथ उसने राज गृह में आकर राज्य करा, उस का बेटा जरासिंधु यह प्रति वासुदेव, यह भी ईश्वर कोटि का जीव था, यह वाचा प्रसंगवश लिखदी है। ___ अब उहां नगर के लोक और विद्वान् ब्राह्मणों ने पर्वत को धिकार दिया, और कहा, हे सत्यवादी, आप इवंता पांडिया, ले डूबा यजमान, तेरी झूठी साक्षी में ऐसा प्रतापी राजा वसु को देवतों ने मार दिया, तूं

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