Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 43
________________ जैनधर्म की प्राचीनता का इतिहास । कन्या संग ऋषभदेव बाल्यावस्था में खेलते यौवन को प्राप्त भये तब इंद्रादिक देव सब मिलके विवाह विधि प्रारंभ की, आगे युगलों में विवाह विधि नहीं थी इसलिये पुरुष के कृत्य तो इन्द्र ने करे और स्त्रियों के सर्व कृत्य इन्द्रानी ने करे, तब से विवाह विधि जगत में प्रचलित हुई वह १६ संस्कार में आगे लिखा है उस में देखना। अब दोनों भार्याओं के साथ ऋषभदेव पूर्ववद्ध भोगावली कर्म को क्षय करने विषय सुख भोगते हैं, जब ६ लाख पूर्व वर्ष व्यतीत भये तव सुमंगला राणी के भरत, ब्रामी, युगल जन्मे तया सुनंदा के बाहुवल सुन्दरी युगल जन्मे, पीछे सुनंदा के तो कोई संतान नहीं हुआ परंतु सुमंगला ने क्रम से ४६ जोड़े पुत्रों के जना एवं सौ पुत्र दो पुत्रियां भई । उन पुत्रों के नाम–१ भरत, २ बाहुवली, ३ श्रीमस्तक, ४ श्री पुत्रांगाररु, ५ श्री मनिदेव, ६ अंग ज्योति, ७ मलयदेव, ८ मार्गवतार्थ, ६ वंगदेव, १० वसुदेव, ११ मगधनाथ, १२ मानवर्चिक, १३मानयुक्ति, १४ वैदर्भ देव, १५ वनवासनाथ, १६ महीपक, १७ धर्मराष्ट्र, १८ मायकदेव, १६ पासक, २० दंडक, २१ कलिंग, २२ ईपकदेव, २३ पुरुषदेव, २४ अकल, २५ भोगदेव, २६ वीर्यभोग, २७.गणनाथ, २८ तीर्णनाथ, २६ अंबुदपति, ३० आयुवीर्य, ३१ नायक, ३२ कात्तिक, ३३ आनर्चक, ३४ सारिक, ३५ ग्रहपति, ३६ करदेव, ३७ कच्छनाथ, ३८ सुराष्ट्र, ३६ नर्मद, ४० सारस्वत, ४१ तापसदेव, ४२ कुरु, ४३ जंगल, ४४ पंचाल, ४५ शूरसेन, ४६ पुट, ४७ कालंगदेव, ४८ काशी कुमार, ४६ कौशल्य, ५० भद्रकाश, ५१ विकाशक, ५२ त्रिगर्त, ५३ श्रावर्ष, ५४ सालु, ५५ मत्स्यदेव, ५६ कुलियक, ५७ मुषकदेव, ५८ वाल्हीक, ५६ कांबोज, ६० मदुनाथ, ६१सांद्रक, ६२ आत्रेय, ६३ यवन, ६४ आभीर, ६५ वानदेव, ६६ वानस, ६७ कैकेय, ६८ सिंधु, ६६ सौवीर, ७० गंधार, ७१ काष्टदेव, ७२ तोपक, ७३ शौरक, ७४ भारद्वाज, ७५ शूरदेव, ७६ प्रस्थान, ७७ कर्णक, ७८ त्रिपुरनाथ, ७६ अवंतिनाथ, ८० चेदिपति, ८१ विष्कम, ८२ नैषध, ८३ दशार्णनाथ, ८४ कुशमवर्ण, ८५ भूपालदेव, ८६ पालप्रभु, ८७कुशल, ८८ पन, ८६ महापन, ६० विनिद्र, ६१ विकेश, १२ वैदेह, ६३ कच्छपति, ६४ भद्रदेव, “६५ बजदेव, १६ सांद्रभद्र,

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