Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 76
________________ १२ श्रीजैनदिग्विजय पताका (सत्यासत्यनिर्णय)। . व्यतीत होने से श्रीशम्भवनाथजी तीसरे तीर्थकर हुए, राज्य सर्व स्यवंशी चन्द्रवंशी कुरुवंशी आदिक राजों के घराने में रहा । इति अजित तीर्थकर सगर चक्रवर्ती का संक्षेप अधिकार संपूर्ण । अब श्रावस्ती नगरी में इक्ष्वाकु वंशी जितारि राजा राज्य करता था। उस के सेना नामे पटराणी, उनों का शंभव नामा पुत्र तीसरा तीर्थकर हुआ, इनों का विस्तार चरित्र षष्टि शालाका पुरुष चरित्र से जाग लेया इति । तद पीछे कितना ही काल के अनतर अयोध्या नगरी. में इच्चाकु वंशी संबर राजा की सिद्धार्था नामक राणी से अभिनंदन नाम का चौथा तीर्थकर हुआ, तदनंतर अयोध्या नगरी में इक्ष्वाकु वंशी मेघ राजा की सुमंगला राणी उनों का पुत्र सुमतिनाथ नाम का पांचमा तीर्थकर हुआ, तदपीछे कितना काल व्यतीत होने से कोशंबी नगरी में, इक्षाकु वंशी श्रीधर राजा की मुसीमा राणी से पनप्रम नाम का छट्ठा तीर्थकर उत्पन्न हुआ। तद पीछे कितना ही काल व्यतीत होने से वाराणसी नगरी में इक्ष्वाकु वंशी प्रतिष्ठ राजा की पृथ्वी नामा राणी से सुपार्थनाथ नाम का सातमा तीर्थकर उत्पन्न हुआ, तद पीछे कितना ही काल व्यतीत होने से चंद्रपुरी नगरी में इक्ष्वाकु वंशी महासेन राजा की लक्ष्मणा नाम राणी से चंद्रप्रम नाम का आठमां तीर्थंकर उत्पन्न हुआ। तद पीछे कितना काल व्यतीत होने से कांकड़ी नगरी में इक्ष्वाकुवंशी सुग्रीव राजा की रामा नामक राणी से सुविधिनाथ नामका अपरनाम पुष्पदंत नवमां तीर्थकर उत्पन्न हुआ ! · यहां पर्यंत तो राजा प्रजा संपूर्ण जैन धर्म पालते थे और सर्व ब्राह्मण जैन धर्मी श्रावक और चार प्राचीन वेदों के पढने वाले बने रहे । जव नवमें नीर्थकर का तीर्थ व्यवच्छेद होगया तब से ब्राह्मण मिथ्यादृष्टि और जैन धर्म के द्वेषी और सर्व जगत के पूज्य, कन्या, भूमि, गौ, दानादिक के लेने पाले जगत में उचम और सर्व के ही कर्ता, मतों के मालक बनने की,

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