Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 61
________________ प्राचीन वेद के बिगड़ने का इतिहास | था, क्योंकि १४ रत्न चक्रवतीं बिना अन्य पास नहीं होता, तब सूर्ययश ने ब्राह्मणोंके गले में स्वर्णमयी, जिनोपवीत, यज्ञोपवीत (जनेऊ) डाली, यज्ञयजन पूजायां बाकी सब बहुमान पितावत् करता रहा, सूर्ययश भी पिताबत् सुकुर भवन में केवल ज्ञान पाय मोच गया, इस के पाट महायश बैठा, इस ने चांदी की जिनोपवीत ब्राह्मणों के डाली, पिताबद बहुमान करते रहा, आगे पाटधारियों ने पटसूत्रमय जनेऊ क्रम से सूत्र की डाली गई, आठ पट्ट तक तो आरीक्षा भवन में केवल ज्ञान पाये, तद पीछे वह भवन खोल डाला । प्राचीन वेद के बिगड़ने का इतिहास । ३७ अत्र वेद कैसे अस्तव्यस्त हुआ, सो जैन धर्म के ६३ शलाका - पुरुष चरित्र से लिखते हैं। नवने सुविधनाथ, श्रहंत के बाद जैन साधु विच्छेद हो गये, तब लोक इन माहनों को धर्म्म पूछने लगे, तत्र माहनों ने जिस में अपना लाभ देखा तैसा धर्म बतलाया, और अनेक तरह के ग्रंथ बनाने लगे, धीरे २ जैन धर्म का नाम भी वेद में से निकालना शुरू करा, अन्योक्ति कर के दैत्यं, दस्यु, वेदबाझ, राक्षस, इत्यादि नाम लिख मारा, नास्तिक, पाखंडी इत्यादि शब्दों से जैन साधुओं को कहकर द्वेषी बन गये, वेदों का नाम भी बदल दिया, असली आर्य वेदों के मंत्र कोई २ किसी पुस्तक वेदों में रह गये, वे भी वेदों में हैं, दक्षिण कर्णाटक जैनवद्री, मूलबद्री, बेलगुल, महेश्वर राज्यांतर्गत देश में जिनों ने आर्यवेद नहीं त्यागा, उन ब्राह्मणों पास आर्य वेदों के मंत्र अभी विद्यमान हैं, जैनागम में लिखा है-गाथा — सिरिभरहचकवट्टी, आयरियवेयाणविस्सु उप्पत्ती, माहणपढणत्थमियं कहियं सुहज्झाणविवहारं । जिण तित्येवुच्छिन्ने मिच्छते माहणेहिं तेठविद्या, अस्सं जयायपूत्रा, अप्पा काहियातेहिं ।। . यहां से आगे कितनेक कालांतर से वेदों की रचना हिंसा संयुक्त याज्ञवल्क्य, सुलसा, पिप्पलाद और पर्वत ब्राह्मणादिकों ने विशेषतया रचदी ।

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