Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 75
________________ अजीत तीर्थकर सगर चक्रवर्ति का इतिहास। दीचा ले मोच गये । अजितनाथ राजा हुए, और सगर युवराज हुआ, बहुत पूर्व लाख वर्षों तक राज्य कर अजित स्वामी स्वयं दीचा ली केवल ज्ञान पाय दूसरे तीर्थकर हुए, पीछे सगर राजा हुआ, तद पीछे चक्रवर्ती हुश्रा, पद् खंड का राज्य करा, जन्हुकुमार प्रमुख ६० हजार पुत्र हुए, उनों ने दंडरत्न से गंगा नदी को अपने असली प्रवाह से फिरा के कैलास के गिरदनवाह खाई खोद के उस खाई में गंगा को लाके डाला, क्योंकि उनों ने विचार करा, हमारे बड़े पुरुषा भरत चक्री ने जो इस पर्वत पर सुवर्ण रत्नमय २४ तीर्थंकरों का सिंह निफ्या प्रासाद कराया उसको तीन हो,उसके रचार्थ गंगा नदी का प्रवाह खाई में फेरदिया वह जल नागकुमार देवतों के भवन में प्रवेश करने से उनों ने ६० हजार पुत्रों को मार डाले, तदनंतर गंगा के जल ने देश में बड़ा भारी उपद्रव करा, तब सगर का पोता जन्हु कुमार का पुत्र भगीरथ ने सगर की आज्ञा से दंडरत्न से पृथ्वी को खोद के गंगा को पूर्व समुद्र में जा मिलाई, इस कास्ते मंगा का नाम जाह्नवी भागीस्थी कहा जाता है, सगर चक्री ने शत्रुजय का तीसरा उद्धार कराया, अन्य भी जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया, तथा यह समुद्र भी जो खाड़ी बजती है, सो भरत क्षेत्र में देवता के सहाय से सगर ही जगती के माहिर के समुद्र में से लाया है, लंका के टापू में वैतात्य पर्वत के वासिंदे पन पाहन को अपनी आज्ञा से सगर ने प्रथम राजा स्थापन करा, लंका के टापू का नाम रावस द्वीप है, धन वाहन के वंश वाले राक्षस कहलाये, इस वैतात्य पर्वत के राजाओं में कतिपय काल के पश्चात् इंद्र तुल्य समाज्य कर्ता इंद्र राजा हुमा, उसने राक्षसद्वीप छीन लिया, तब रावस वंशी राजा भाग के पाताल लंका में जा बसे, तद पीछे रत्नश्रवा के ३ पुत्र रावण कुम्भकर्ण, विभीपण इंद्र को मार, लंका पीछी ले ली, सगर चक्रवर्ति का विस्तार चरित्र तेसठ शला का पुरुप चरित्र से जान लेना, वह ३३ हजार काव्य बंध है। सगर अजितनाथजी पास दीक्षा ले केवल ज्ञान पाकर मोक्ष गया, अजितनाथजी भी सम्मेत शिखर पर्वत पर मुक्ति पहुंचे, अपभूदेव स्वामी के निर्वाण पीछे ५० लाख कोड़ी सागरोपम के व्यतीत होने से अजित स्वामी का निर्वाण हुआ, उनों के निर्वाण पीछे ३० लाख कोड़ी सागरोपम वर्ष

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