Book Title: Jain Digvijay Pataka
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 14
________________ [. ] . संसारी खाता मुंह के कहने मात्र से मिथ्यात्व का बंध छूट जाता होगा, इस समझ को धन्यवाद है। जिन कुमतियों ने तुमको मिथ्यात्व देवी देवताओं को मानते पूजते को संसारी खाते करना बतलाया वह एक अपेक्षा सत्य प्रतीति होता है, संसारी खाते की वृद्धि होगी, संसार में परिभ्रमण करना पड़ेगा इसलिये संसार खाते यथार्थ नाम सिद्ध है। ' अब जिन प्रतिमा में प्रथम ६ नय सिद्धता दरशाते हैं-समवसरण में पूर्व दिशि के द्वार सन्मुख श्री तीर्थकर सिंहासन पर आप विराजते है, दक्षिण पश्चिम तथा उत्तर के द्वार सन्मुख श्री अरिहंतजी की प्रतिमा (विब) विराजता है वह प्रतिमा रूप थापना जिन है, वह उपकारी है, उस प्रतिमा का आलंबन पाय करके समवसरण में अनेक जीव समकित धारी-हुये, व्रत के धारणे वाले पूर्व दिशि के द्वार बैठते है। अन्य ३ दिशि जिन प्रतिमा से जीव समकित का लाभ लेते हैं इसलिये ये धन्यता थापना निक्षेपे का उपकार है, थाफ्ना का विशेष उपकारीपणा तथा सत्यपना कहते है । अरिहंत तथा सिद्ध परमेश्वर अपने आत्मा का निमित्त कारण है और जिन प्रतिमा वह भी अपने तत्व साधन का . निमित्त कारण है इसलिये ठाणांग सूत्र के दसमें ठाणे ठवणसचे स्थापना को सत्य कहा, जिन प्रतिमा में अरिहंत सिद्धपना ६ नय से है, यदि कोई कहे कि अरिहंत हुये सिद्ध हुये उन की थापना है तो ७ नय छोड़ ६ नय कैसे कहते हो ! (उत्तर) मूल तो थापना में ३ नय है, नाम स्थापना द्रव्य तीन निक्षेप, नैगम नयवर्ती ऐसा है। यहां नामादि एक २ निक्षेपे का चार २ भेद होता है (उक्तं च भाष्ये) नामादि प्रत्येकं चतुरूपमिति ॥ ___ नाम स्थापना में है उस थापना, का नाम निक्षेपा है। स्थापना ग्रहण कारण होता है, उस स्थापना का स्थापना निक्षेपा है, समुदायता अनुपयोगता उस स्थापना का द्रव्य निक्षेपा है, आगारोभिप्पात्रो (आकार से अभिप्राय होता है) इस धर्म का कारणिक होना वह थापना. का भाव निक्षेपा है इस तरह थापना चार निक्षेपे युक्तहै अथवा नस्थिनएहि विहुणं सुत्तोअस्थायजियम एकिंचि अर्थात् नहीं है नय बिना सूत्र वा अर्थ जिन-मत में कुछ भी, सर्व बचन नय (न्याय ) युक्त है। • अरिहंत सिद्ध भगवान् की थापना है उसमें नय कहते हैं:: (१) प्रतिमाके देखने से अरिहंत सिद्ध का संकल्प चित्त में होता है।

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