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________________ जैनधर्म की कहानियाँ भाग - 23 62 हुआ और वह चक्र अपने नये स्वामी त्रिपृष्ठ के आदेश की प्रतीक्षा करने लगा । तुरन्त वही चक्र क्रोधावेश में त्रिपृष्ठ ने अश्वग्रीव पर फेंका। उस चक्र ने अश्वग्रीव की ग्रीवा को छेद दिया और वे त्रिपृष्ठ वासुदेव के रूप में प्रसिद्ध हुए । त्रिपृष्ठ वासुदेव ने विजय बलभद्र सहित त्रिखण्ड के राज्य का दीर्घकाल तक उपभोग किया। पिता प्रजापति ने दीक्षा ग्रहण कर केवलज्ञान प्रगट प्रकार करके निर्वाण प्राप्त किया । त्रिपृष्ठ कुमार निदानबंध के कारण विषयों के ध्यान सहित निद्रावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हुआ और सातवें नरक में जा गिरा । तीव्र विषयाशक्तिजनित पापफल में वह जीव असंख्यात वर्ष के महाभयानक दुःखों को प्राप्त हुआ । अपने भाई त्रिपृष्ठ की मृत्यु होने पर विजय बलभद्र छह मास तक उद्वेग में रहे, पश्चात् वैराग्य प्राप्त जिनदीक्षा धारण की ओर मोक्ष पद प्राप्त किया । सदा साथ रहने वाले दो भाई, उनमें से एक ने मोक्षसुख प्राप्त किया और दूसरे ने विषय - कषायवश सातवें नरक के घोर दुःख पाये । इससे परिणामों की विचित्रता तथा उनका विचित्र फल सहज ही ख्याल में आता है । अतः हमें अपने परिणामों को सदा स्वाश्रित ही रखना चाहिए, पराश्रित परिणाम नियम से दुःखदायी होता है । विश्वनंदि आदि में ऐसा बैरभाव किस कारण हुआ यह जानने के लिए आगामी कथा का स्वाध्याय अवश्य करें । आवश्यकता से अधिक कमाना भी भूख से अधिक खाने के समान हानिकारक है । - ब्र. रवीन्द्रजी 'आत्मन्'
SR No.032272
Book TitleJain Dharm Ki Kahaniya Part 23
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaribhai Songadh, Premchand Jain, Rameshchandra Jain
PublisherAkhil Bharatiya Jain Yuva Federation
Publication Year2014
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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