Book Title: Gora Badal Padmini Chaupai
Author(s): Hemratna Kavi, Udaysinh Bhatnagar
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan

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Page 14
________________ C,, D, स्वीकृत मूल छन्द इस प्रकार हैंA प्रति में मूल स्वीकृत (हेमरतन कृत) 616 छन्दों में से 12 छन्द कम हैं (616.604) ,,, (616-612) , , , , , (616.606) , , , , , (616.606) " , , 54 , , (616-562) प्रत्येक प्रति में जो छन्द कारण विशेष से क्षेपक माने गये हैं, उन्हें नीचे टिप्पणी में दे दिया गया है। प्रत्येक प्रति के स्वीकृत तथा अस्वीकृत छन्दों में कई छन्द पूर्ण नहीं हैं / कहीं-कहीं क्षेपक रूप में एक एक अर्भाली जोड़ी गई है और कहीं क्षेपकों में मूल छन्द का कोई अंश है / अतः प्रत्येक प्रति में इस स्थिति की सूचना यथास्थान दे दी गई है। छन्द-निर्णय के पश्चात् पाठ-निर्णय भी आवश्यक है। प्रस्तुत प्रतियों में कोई भी प्रति हेमरतन की मूल प्रति नहीं है / न तो किसी में हेमरतन द्वारा रचित पूरे 616 छन्द ही हैं और न कोई भी प्रति क्षेपकों से सर्वथा मुक्त ही है। पर विभिन्न प्रतियों में से हेमरतन के 616 छन्द अवश्य निकल जाते हैं। ऐसी स्थिति में उनके पाठों की समस्या सामने आ जाती है / अतः पाठ संशोधन के लिये निम्नलिखित प्राधार निश्चित किये गये 1. प्रतियों की प्राचीनता का प्राधार : सामान्य रूप से सब से प्राचीन प्रति को आधार मान कर पाठ-निर्णय करने की एक शैली परम्परा से चली आती है। परन्तु कभी-कभी प्राचीनतम प्रति भी लिपिकार के प्राग्रह से मुक्त नहीं होती। ऐसी स्थिति में वह उतनी सहायक नहीं होती जितनी अन्य प्रतियाँ / यहाँ A प्रति मूल रचना के एक वर्ष पश्चात् लिखित प्रति की प्रतिलिपि है। परन्तु यह भी पाठान्तरों प्रोर क्षेपकों से मुक्त नहीं है / अन्य प्रतियों में पाठान्तर अधिक होने पर भी कहीं-कहीं पाठ-निर्णय में उनसे बड़ी सहायता मिली है। इस दृष्टि से E प्रति उल्लेखनीय है जिसमें सबसे अधिक पाठान्तर और क्षेपक होते हुए भी अनेक स्थलों पर A प्रति से मेल खाने से वह पाठ-निर्णय में सहायक हुई है। जैसे Bc DE अबका प्रबकइ प्रबकिइ भवकह माजूणडे माजूण- प्राजूखो पाजूणो माजूरगडे माणिसं माणिसि माणिसि माणिसुं मारिणसं A

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