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धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली
१३ श्री विमल जिन स्तवन
राग-- पल्हार
विमल जिन विमल तुम्हारा ज्ञान ।
परखै लोक के सकल पदारथ, पट् द्रव्य नीकी खान ||१|| वि मिथ्या, अविरती योग कषायै, बंध सत्तावन जान । अ कर्म, इक सौ अट्ठावन, प्रकृति तजी पहिचान ||२|| वि० आपहि आप सुरौं आप पिछाण्यौ, परगुण नाहिं प्रमाण | चरि धर्म ध्यान पिछान सुक्ल पथ, थिर बैठो शिव थान ||३||वि
१४ श्री अनंतनाथ स्तवन
राग - सोरठ
सहु संता ।
मतिमंता ||१||
अनंतनाथ रा गुण अगम अनंता, साभलजो रयणायर में गिणती रयणे, मुनि न कहै मध्य अनंतानंत छयें में, थोवा सिद्ध अनंता । एक निगोढ़ी जीव अनंता, वलिय वनस्पति वंता ॥२॥ काल पुग्गल आकार अनुक्रम, अधिक अनंतानंता । श्री धर्मशी कहै ए सर्दहिजो, साखी सूत्र सिद्धता ॥ ३ ॥