Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 442
________________ - सस्कृत स्तोत्रादि सग्रह ३६१ राजानः स्वैर्ललाटरहरहरमिता यान्स्पृशन्ति प्रणामात् , ते राजतो नखास्ते जगति जिनविभो तान्यपि द्योतयन्ति । स्वामिस्तस्मादमीपा प्रवरमिह महाराज नामास्ति सत्तन्मन्त्र्येऽन्ये नखायामपि दधति महाराज संज्ञा मृपा सा ।। १४ यावल्लसन्तौ दिविपुष्पदन्तौ यावद् ध्र वस्तावदसौ स्तवश्च, कुर्यात्प्रकर्ष विजयादिहर्प सद्य क्तिलीलः शुभधर्मशीलः ।। १५ ।। (१) समसंस्कृतमयं पार्श्वनाथ लघुस्तवनम् ससारवारिनिधितारकतारकाभ, डिंडीरहीरसमसत्तमवोधिलाभ । आतंकपंकदलनातुलवारिवाह, वामेयदेव जयभिन्न भवोरुदाह ।। १ ॥ जानामि कामित करं तव नाम देव, तेनाऽऽगतोऽहमिह पादसरोरुहे ते। मा माऽवहीलय गुणालय सहयालो, संतो भवन्ति निपुणाहि परोपकारे ॥२॥ मोहारिभूमिरुहभंगमतंगजाय, संछिन्नतुगसमनोज मनोजवाय । मायाविवादिकुवलालिन वारुणाय, भूयो नमो भवतु ते जिननायकाय ।। ३ ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478