Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

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Page 444
________________ सस्कृत स्तोत्रादि सग्रह योगीश्वराय शिवशालिवने शुकाय, तुभ्यं नमोऽस्तु सततं जिननायकाय ॥ ३ ॥ दारिद्रय-रेणु भर-सहरणाम्बुदाय, सम्पत्ति-सिद्धि सुयशः सुखबोधदाय । आजन्मदुःखगणपल्लवलावकाय, तुभ्यं नमोऽस्तु सततं जिननायकाय ।।४।। देवाऽसुरप्रणतपाद सरोरुहाय, कुन्देन्दुमण्डलसमुज्ज्वलचिद्गृहाय । निःसंख्यदुःखदगदक्षय कारकाय, तुभ्यं नमोऽस्तु सतत जिननायकाय ।। ।। पूर्णक्षपारमण शुभ्रकलाकलाय सत्कीर्ति संभृतदिगीश्वरमण्डलाय । लीलाऽऽलयाय विकचाम्बुरुहाम्बकाय, तुभ्य नमोऽस्तु सततं जिननायकाय ॥६॥ , (कलश ) इत्थं विश्वयमश्वसेननरराड-वशाजघस्राधिपं, सद्वामोदर शुक्तिमौक्तिकनिभ कल्काग भङ्गद्विपम् । श्रीपाश्वं विजयादिहर्प सहिताः स्युः सस्तुवन्तो नराः, पार्श्वेश बहुधर्मवर्द्धनधनं चिद्रनरत्नाकराः ॥७ - - -

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