Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 460
________________ सस्कृत स्तोत्रादि सग्रह ३७६ क्षीराधि विविध विमानभवन सद्रत्नराशिमहान, निधूमा निरिसे चतुर्दश शुभाः स्वप्ना मुदे सन्तु वः।।१।। गीर्वाणसिन्धावहिमगिनो वहून्, नन्तं समालोक्य रुपा गरुत्मान् । जघान गगाम्वु-शुभप्रभावा, चतुर्भुजीभूय वभूव तत्पतिः ॥१॥ ENLear शीघ्रमागच्छ भो शिष्य, मम पादौ निपीडय, परिचर्याप्रसादेन, त्व प्रवीणो भविष्यसि ॥१॥ v edic (१०) श्रीपाश्र्वनाथस्तोत्रम् प्रसर्सति पार्वेश विश्वे यशस्ते, विशस्ते तु धन्या पदाव्जस्पृशस्ते, मदीयाऽपि लोला, स्तुतौ तेऽस्तु लोला, विदोलायमाना भ्रमादत्त मा भून् ॥१॥ बुधास्ते सपऱ्यातया 'चारुता , भवाब्धि प्रती- भजान्सद्विपुर्य्या ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478