Book Title: Dharmvarddhan Granthavali
Author(s): Agarchand Nahta
Publisher: Sadul Rajasthani Research Institute Bikaner

View full book text
Previous | Next

Page 435
________________ ३५४ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली - (इन्द्रवज्रा) पद्मप्रभोऽर्हन् वरपद्मलोचनः, पद्माननवाश्रितपालाञ्छनः । सञ्चित्तपद्मामलपद्मलाञ्छनः, पक्षाकरः स्वाच्छिवपद्मलाञ्छनः ॥६॥ (भुजङ्गप्रयात) भजन्ता प्रभुं चित्प्रदं श्रीसुपावं, भवन्तो नरा नूनमानन्दपाश्वं । जिनं तप्तहेमस्फुरत्कान्तिपावं, सता सातदं दम्भवल्ल्यग्रपाश्वं ॥७॥ (वसन्ततिलका) चन्द्रप्रभं जिन वदन्ति यके मनुष्या त्वा सेवकेन्दुसशीकरणान्न दक्षाः भो चन्द्रसेवितपदाब्ज परंमयोक्तः, स्वामिन्वत स्तवभकार-उकारयुक्तः ॥८॥ (तोटक) विवुधा प्रणुवन्ति जिनं सुविधि, विविधप्रकटीकृतधर्मविधि । शिवमार्गविधानत एव विधि, गुणनीरनिधि शिवदायिविधि ।।६।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478