SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५६ धर्मवर्द्धन ग्रन्थावली १३ श्री विमल जिन स्तवन राग-- पल्हार विमल जिन विमल तुम्हारा ज्ञान । परखै लोक के सकल पदारथ, पट् द्रव्य नीकी खान ||१|| वि मिथ्या, अविरती योग कषायै, बंध सत्तावन जान । अ कर्म, इक सौ अट्ठावन, प्रकृति तजी पहिचान ||२|| वि० आपहि आप सुरौं आप पिछाण्यौ, परगुण नाहिं प्रमाण | चरि धर्म ध्यान पिछान सुक्ल पथ, थिर बैठो शिव थान ||३||वि १४ श्री अनंतनाथ स्तवन राग - सोरठ सहु संता । मतिमंता ||१|| अनंतनाथ रा गुण अगम अनंता, साभलजो रयणायर में गिणती रयणे, मुनि न कहै मध्य अनंतानंत छयें में, थोवा सिद्ध अनंता । एक निगोढ़ी जीव अनंता, वलिय वनस्पति वंता ॥२॥ काल पुग्गल आकार अनुक्रम, अधिक अनंतानंता । श्री धर्मशी कहै ए सर्दहिजो, साखी सूत्र सिद्धता ॥ ३ ॥
SR No.010705
Book TitleDharmvarddhan Granthavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherSadul Rajasthani Research Institute Bikaner
Publication Year1950
Total Pages478
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy