Book Title: Chariya Pitakam
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu

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Page 13
________________ वेस्सन्तरचरियं अहो मे मानसं सिद्ध सङकप्पो परिपूरितो अदिन्नपुब्बं दानवरं अज्ज दस्सामि याचके ॥१२॥ एहि सीवक उठेहि मा दन्तयि मा* पबेधयि उभोपि नयने देहि उप्पाटेत्वा वतिब्बके (वनिब्बके) ॥१३॥ ततो सो चोदितो मय्हं सीवको वचनं करो उद्धरित्वान पादासि तालमिजं व याचके ॥१४।। ददमानस्स देन्तस्स दिन्नदानस्स मे सतो चित्तस्स अाथा नत्थि बोधिया येव कारणा ॥१५॥ न मे देस्सा उभो चक्खू अत्ता न मे न देस्सियो सब्बञ्जतं पियं मय्हं तस्मा चक्खू अदासहन्ति (अदासिहन्ति) ॥१६।। सिया -वेस्सन्तरचरियं'। या मे अहोसि जनिका फुस्सती नाम खत्तिया सा अतीतासु जातिसु सक्कस्स च महेसिया ॥१॥ तस्सा आयुक्खयं दिस्वा देविन्दो एतदब्रविःददामि ते दस वरे (वरं ) वर भद्दे यदिच्छसीति ॥२॥ एवं वुत्ता च सा देवी सक्कं पुरिन्द (पुनिद) मब्रवि किन्नु मे अपराधत्थि किन्नु देस्साअहन्तव रम्मा चावेसि मं ठाना वातो व धरणि रुहन्ति ॥३॥ एवं वुत्ते च सो सक्को पुन तस्सेदमब्रवि (तस्सीदमववि) न चेव ते कतं पापं न च मे त्वमसि अप्पिया ॥४॥ एत्तकं येव ते आयुं चवनकालो भविस्सति पटिगण्हमयादिन्ने वरे दस वरुत्तमेति ॥५॥ सक्के न सा दिन्नवरा तुट्रहदा पमोदिता ममं अब्भन्तरं कत्वा फुसती दस वरे वरी ॥६॥ * Sinhalese edition omits this मा १ Vessantara Jataka, Jataka, Vol. VI, 479-539. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com

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