________________
आवश्यक
१२८
आवश्यक के निक्षेप
नोआगमतः द्रव्यावश्यक तीन प्रकार का है - ज्ञशरीर तीन प्रकार हैं -लौकिक, कुप्रावनिक और लोकोत्तद्रव्यावश्यक, भव्यशरीर द्रव्यावश्यक और ज्ञशरीर-भव्य- रिक । शरीर-व्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक ।
लौकिक द्रव्यावश्यक ज्ञशरीर द्रव्यावश्यक
जे इमे राईसर-तलवर "सत्थवाहप्पभिइओ कल्लं ""आवस्सए त्ति पयत्थाहिगारजाणगस्स जं सरीरय पाउप्पभायाए... महधोयण-दंतपक्खालण" पुप्फ-मल्लववगयत्य-चाविय-चत्तदेहं जीवविप्पजढं"पासित्ताणं कोइ गंध-तंबोल-वत्थाइयाई दवावस्सयाई काउं तओ पच्छा वएज्जा-अहो णं इमेणं सरीरसमुस्सएणं जिणदिलैंण रायकलं वा देवकलं वा.."गच्छति। से तं लोइयदव्वावभावेणं आवस्सए ति पय आघवियं पण्णवियं"। जहा स्सयं ।
(अनु १९) को दिळंतो? अयं महकुंभे आसी, अयं घयकुंभे आसी।
उषाकाल में पौ फटने पर राजा, युवराज, कोतवाल, से तं जाणगसरीरदव्वावस्सयं । (अनु १६) सार्थवाह आदि मुख धोते हैं, दांत पखालते हैं, फूल,
'आवश्यक' इस पद के अर्थाधिकार को जानने वाले माला, गन्ध, ताम्बूल, वस्त्र आदि का प्रयोग करते व्यक्ति का जो शरीर अचेतन, प्राण से च्युत, किसी हैं, वे इन सभी द्रव्य सम्बन्धी आवश्यक क्रियाओं को निमित्त से प्राणच्युत किया हुआ, अनशन द्वारा त्यक्त, सम्पन्न कर राजकुल, देवकूल आदि में जाते हैं। वह जीव-विप्रमुक्त है, उसे देखकर कोई कहे आश्चर्य है ! लौकिक द्रव्य आवश्यक है। इस पौद्गलिक शरीर से अर्हत द्वारा उपदिष्ट भाव के
कुप्रावनिक द्रव्यावश्यक अनुसार 'आवश्यक' इस पद का आख्यान-प्रज्ञापन किया है। जैसे - कोई दष्टान्त है? (आचार्य ने दष्टांत
...जे इमे चरग-चीरिय-चम्मखंडिय-भिक्खोंड...
इंदस्स वा खंदस्स वा "उवलेवण-सम्मज्जण''मल्लाइबताया) यह मधुघट था, यह घृतघट था । वह ज्ञ-शरीर
याई दवावस्सयाइं करेंति। से तं कुप्पावयणियं दव्वावद्रव्यावश्यक है।
स्सयं ।
(अनु २०) भव्यशरीर द्रव्यावश्यक
जो चरक, चीरिक, चर्मखण्डिक, भिक्षाजीवी आदि जे जीवे जोणिजम्मणनिक्खंते इमेणं चेव आदत्तएणं विभिन्न धर्म सम्प्रदायों के अनुयायी इन्द्र, कार्तिकेय आदि सरीरसमुस्सएणं जिणदिठेणं भावेणं आवस्सए त्ति पयं के (मंदिर में) उपलेपन, संमार्जन तथा धूप-गंध-माला सेयकाले सिक्खिस्सइ, न ताव सिक्खइ। जहा को आदि द्रव्य-सम्बन्धी आवश्यक क्रियाओं को सम्पन्न करते दिळंतो? अयं महकंभे भविस्सइ, अयं घयकंभे भवि- हैं, वह कुप्रावचनिक द्रव्य आवश्यक है। स्सइ । से तं भवियसरीरदव्वावस्सयं । (अनु १७) लोकोत्तर द्रव्यावश्यक ___गर्भ की पूर्णावधि से निकला हुआ जो जीव इस प्राप्त
जे इमे समणगुणमुक्कजोगी छक्कायनिरणुकंपा हया पौद्गलिक शरीर से 'आवश्यक' इस पद को अर्हत् द्वारा
इव उद्दामा गया इव निरंकुसा घट्ठा मट्ठा तुप्पोट्ठा पंडुरउपदिष्ट भाव के अनुसार भविष्य में सीखेगा, वर्तमान में
पाउरणा जिणाणं अणाणाए सच्छंदं विहरिऊणं उभओनहीं सीखता है तब तक वह भव्य-शरीर-द्रव्य-आवश्यक
कालं आवस्सयस्स उवठ्ठति। से तं लोगुत्तरियं दव्वावहै। जैसे--कोई दृष्टान्त है ? (आचार्य ने कहा-इसका
स्सयं ।
(अनु २१) दृष्टांत यह है) यह मधुघट होगा, यह घृतघट होगा।
जो श्रमण श्रमणगुण से शुन्य प्रवृत्ति वाले, छहकाय वह भव्यशरीर-द्रव्य-आवश्यक है।
के जीवों के प्रति अनुकम्पा रहित, घोड़े की भांति उद्दाम, तव्यतिरिक्त द्रव्यावश्यक
हाथी की भांति निरंकुश, शरीर का घर्षण और तैल जाणगसरीर-भवियसरीर-वतिरित्तं दवावस्सयं आदि से मर्दन करने वाले, चुपड़े होठ वाले, श्वेत-पीत तिविहं पण्णत्तं, तं जहा-लोइयं कुप्पावयणियं लोगु- वस्त्र पहनने वाले हैं, वे तीर्थंकरों की आज्ञा से बाहर त्तरियं।
(अनु १८) स्वच्छन्द विहार कर जो दोनों समय आवश्यक के लिए ज्ञशरीर-भव्यशरीर-व्यतिरिक्त द्रव्य आवश्यक के उपस्थित होते हैं, वह लोकोत्तरिक द्रव्य आवश्यक है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org