________________
चेष्टा कायोत्सर्ग
२०५
कायोत्सर्ग
उच्छितः""द्रव्यतः भावतः धम्म सुक्कं च दुवे, झायइ झाणाइ जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो, उसिउसिओ होइ नायव्वो।
(आवनि १४७९) खड़े होकर धर्म और शुक्ल-इन दो ध्यानों में प्रवृत्त होना उच्छित-उच्छ्रित कायोत्सर्ग है।।
खड़े होकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः उच्छित कायोत्सर्ग है।
धर्म-शुक्ल ध्यान करना-भावतः उच्छित कायोत्सर्ग
धम्म सुक्कं च दुवे, न वि झायइ न वि य अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो, दवुस्सिओ होइ नायव्वो॥ अट्ट रुदं च दुवे, झायइ झाणाई जो ठिओ संतो। एसो काउस्सग्गो, दवस्सिओ भावओ निसन्नो । धम्म सुक्कं च दुवे, झायइ झाणाई जो निसन्नो अ। एसो काउस्सग्गो निसनुसिओ होइ नायव्वो ।। धम्म सुक्कं च दुवे, न वि झायइ न वि य अझरुद्दाई । एसो काउस्सग्गो, निसन्नओ होइ नायव्वो ॥ अटें रुई च दुवे, झायइ झाणाई जो निसन्नो य । एसो काउस्सग्गो, निसन्नगनिसन्नगो नाम । धम्म सुक्कं च दुवे, झायइ झाणाइं जो निवन्नो य । एसो काउस्सग्गो, निवनुसिओ होइ नायव्वो॥ धम्म सुक्कं च दुवे, न वि झायइ न वि य अट्टरुद्दाई। एसो काउस्सग्गो, निवन्नओ होइ नायव्वो॥ अट्ट रुदं च दुवे, झायइ माणाइजो निवन्नो उ । एसो काउस्सग्गो, निवन्नगनिवन्नगो नाम ।।
(आवनि १४८०, १४८९-१४९५) • खड़े होकर धर्म, शुक्ल, आर्त और रौद्र-किसी ध्यान में प्रवृत्त नहीं होना, यह द्रव्य-उच्छित कायोत्सर्ग है। खड़े रहकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः उच्छ्रित, ध्यान का अभाव-भावतः शून्य । • खड़े होकर आर्त और रौद्र-ये दो ध्यान करना
द्रव्यत: उच्छित और भावतः निषण्ण कायोत्सर्ग
. बैठकर धर्म-शुक्ल अथवा आर्त्त-रौद्र --किसी ध्यान में संलग्न नहीं होना-निषण्ण कायोत्सर्ग है। बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण । ध्यान का अभाव-भावतः शून्य । बैठकर आर्त और रौद्र ध्यान में संलग्न होना निषण्ण निषण्ण कायोत्सर्ग है। बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण ।
आत-रौद्र ध्यान करना-भावतः निषण्ण । ° सोकर धर्म और शुक्ल ध्यान में संलग्न होना निपन्न-उच्छित कायोत्सर्ग है। सोकर कायोत्सर्ग करना--द्रव्यतः निपन्न । धर्म-शुक्ल ध्यान करना-भावतः उच्छित । • सोकर धर्म-शक्ल अथवा आत-रौद्र-किसी ध्यान
में संलग्न नहीं होना निपन्न कायोत्सर्ग है। सोकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निपन्न। ध्यान का अभाव-भावतः शून्य । ० सोकर आर्त्त और रौद्र ध्यान में संलग्न होना निपन्न-निपन्न कायोत्सर्ग है। सोकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निपन्न। आत-रौद्र ध्यान करना-भावतः निपन्न । उड्ढनिसीयतुयट्टण ठाणं तिविहं तु होइ नायव्वं ।"
(ओभा १५२) स्थान (कायोत्सर्ग) के तीन प्रकार१. ऊर्ध्व -- खड़े-खड़े कायोत्सर्ग करना । २. निषीदन-बैठे-बैठे कायोत्सर्ग करना । ३. त्वकवर्तन-सोए-सोए कायोत्सर्ग करना । सो उस्सग्गो दुविहो, चिट्ठाए अभिभवे य णायव्वो । भिक्खायरियाइ पढमो, उवसग्गभिजंजणे बिइओ।
(आवनि १४५२) कायोत्सर्ग के दो प्रकार१. चेष्टा--भिक्षाचर्या आदि की प्रवृत्ति के पश्चात्
कायोत्सर्ग करना। २. अभिभव--प्राप्त उपसर्गों को सहन करने के
लिए कायोत्सर्ग करना। चेष्टा कायोत्सर्ग
विओसग्गो-काउस्सग्गो, गमणागमण सुविण-णइसंतरणादिसु ।
(दअचू पृ १४)
• बैठक र धर्म और शुक्ल ध्यान में संलग्न होना निषण्ण-उच्छित कायोत्सर्ग है । बैठकर कायोत्सर्ग करना-द्रव्यतः निषण्ण । धर्म-शुक्ल ध्यान करना--भावत: उच्छित।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org