Book Title: Bhikshu Agam Visjay kosha Part 1
Author(s): Vimalprajna, Siddhpragna
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 767
________________ स्वरमंडल भणिति (गीत की भाषा) के दो प्रकार हैं संस्कृत और प्राकृत । ये दोनों प्रशस्त और ऋषिभाषित हैं तथा स्वर-मण्डल में गाई जाती हैं। रंग के आधार पर स्वर सामा गाय महूरं काली गाय गोरी गाय चढरं, काणा य श्यामा स्त्री मधुर गीत गाती है। 12 काली स्त्री परुष और हवा गीत गाती है। गोरी स्त्री चतुर गीत गाती है। काणी स्त्री विम्बित गीत गाती है। अंधी स्त्री दुत गीत गाती है। पिंगला स्त्री विस्वर गीत गाती है। ( स्वर मण्डल की विशेष जानकारी के लिए देखें ठाणं ७३९-४८ के टिप्पण) 7 ८. काव्य के प्रकार T खरंच हवं च । विलंबियं दुतं अंधा ॥ , विस्सरं पुण पिंगला || ( अनु २०७।१३) गज्जं परमं गतं चूष्णं . तिसमुद्वाणं सव्वं इति ग्रथित (छन्दबद्ध) पद के चार प्रकार हैं १. गद्य २. प. और ४. चूर्ण सभी पद तीन समुत्थान वाले हैं। गडा काव्य मधुरं हेडनिडतं गतिमपादं विरामसंजुतं । अपरिमियं चवसाणे कव्वं गज्जं ति णायव्वं ॥ गय काव्य वह है च चव्विहं तु गहियपदं । बेंति सलक्खणा कइणो ॥ (दनि ७६) जो सूत्र आदि के विभाग से मधुर है। o • जो हेतुयुक्त है । ० Jain Education International • ७२२ • जो पादविहीन चरणबद्ध रचित नहीं है । ● जो विरामयुक्त है। • जो अपरिमित अंत वाला है । yurce (दनि ७७) पद्य काव्य पज्जं पि होति तिविहं सममतसमं च णाम विसमं च। पाएहि अक्खरेहिं य एवं विष्णू कई विति ॥ (दनि ७८ ) चूर्ण काव्य पद्य काव्य के तीन प्रकार १. सम जिसमें चारों चरण समान अक्षर, विराम और मात्रा वाले हों । २. अर्धसम जिसमें प्रथम और तृतीय चरण तथा द्वितीय और चतुर्थ चरण समान अक्षर, विराम और मात्रा वाले हों । ३. विषम - जिसके चारों चरणों में अक्षर, मात्रा और विराम विषम हों - समान न हों ! गेय काव्य तंतिसमं वण्णसमं तालसमं गहसमं लयसमं च । कव्वं तु होइ गेयं पंचविहं गेयसण्णाए । (दनि ७९) गेय काव्य के पांच प्रकार १. तन्त्रीसम बाचों के तारों पर अंगुलीसंचार के साथ गाया जाने वाला गीत । - २. वर्ण सम - ह्रस्व, दीर्घ, प्लुत आदि अक्षरों के अनुरूप अथवा पदों के अनुरूप स्वरों वाला गीत । ३. तालसम - तालवादन के अनुरूप स्वर में गाया जाने वाला गीत । ४. ग्रहसम - वीणा आदि द्वारा गृहीत स्वरों के अनुसार गाया जाने वाला गीत । ५. लयसम-वाद्यों की धुनो के अनुसार गाया जाने वाला गीत । चूर्ण काव्य अत्यबहुलं महत्वं हेउनिया ओवसग्गगंभीरं । बहुपमवोच्छिन्नं गमणयमुद्धं च ष्णपदं ॥ For Private & Personal Use Only (दनि ८० ) चूर्ण काव्य वह है • जो अर्थ बहुल है - जिसमें एक-एक पद के अनेक अर्थ हैं । VIS ० जो महान् अर्थ वाला है, जो अनेक नयवादों की गंभीरता से महान् है । M. • जो हेतुयुक्त है । • जो 'च', 'वा' आदि निपातयुक्त है । www.jainelibrary.org

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