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जम्बूखादक का दृष्टांत
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लेश्या
नीयावित्ती अचवले अमाई अकूऊहले । है, दान्त है, समाधियुक्त है, उपधान (श्रुत अध्ययन करते विणीयविणए दंते जोगवं उवहाणवं ।। समय तप) करने वाला है, धर्म में प्रेम रखता है, धर्म में पियधम्मे दढधम्मे वज्जभीरू हिएसए। दृढ़ है, पापभीरू है, हित चाहने वाला है -जो इन सभी एयजोगसमाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे ।। प्रवृत्तियों से युक्त है, वह तेजोलेश्या में परिणत होता है । पयणक्कोहमाणे य मायालोभे य पयणुए।
पद्म लेश्या के परिणाम पसंतचित्ते दंतप्पा जोगवं उवहाणवं ।।
जिस मनुष्य के क्रोध, मान, माया और लोभ अत्यन्त तहा पयणुवाई य उवसंते जिइंदिए ।
अल्प हैं, जो प्रशान्त-चित्त है, अपनी आत्मा का दमन एयजोगसमाउत्तो पम्हलेसं तु परिणमे ।।
करता है, समाधियुक्त है, उपधान करने वाला है, अत्यल्पअट्टरुद्दाणि वज्जित्ता धम्मसुक्काणि झायए ।
भाषी है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है- जो इन सभी पसंतचित्ते दंतप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिहिं ।।
प्रवृत्तियों से युक्त है, वह पद्म लेश्या में परिणत होता है। सरागे वीयरागे वा उवसंते जिइंदिए । एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेसं तु परिणमे ।।
शुक्ल लेश्या के परिणाम
(उ ३४।२१-३२) जो मनुष्य आर्त और रौद्र --इन दोनों ध्यानों को कृष्ण लेश्या के परिणाम
छोड़कर धर्म्य और शुक्ल-इन दो ध्यानों में लीन रहता ___ जो मनुष्य पांचों आश्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों
है, प्रशान्त-चित्त है, अपनी आत्मा का दमन करता है, से अगुप्त है, षटकाय में अविरत है, तीव्र आरम्भ (सावद्य समितियों से समित है, गुप्तियों से गुप्त है, उपशान्त है, व्यापार) में संलग्न है, क्षद्र है, बिना विचारे कार्य करने जितेन्द्रिय है- जो इन सभी प्रवृत्तियों से युक्त है, वह वाला है, लौकिक और पारलौकिक दोषों की शंका से सराग हो या वीतराग, शुक्ल लेश्या में परिणत होता है। रहित मन वाला है, नशंस है, अजितेन्द्रिय है-जो इन जम्बूखाबक का दृष्टान्त सभी से युक्त है, वह कृष्ण लेश्या में परिणत होता है। एगत्थ छहिं मणूसेहिं जंबू दिट्ठा फलभरिता । नील लेश्या के परिणाम
तत्थेगो पुरिसो भणति-मूला छिज्जतु तो पडिताए खाइ
स्सामो, सो कण्हाए । बितिओ भणति मा विणासिज्जतु, ___ जो मनुष्य ईर्ष्यालु है, कदाग्रही है, अतपस्वी है,
साला छिज्जंतु, सो नीलाए वट्टति। ततिओ-मा साला अज्ञानी है, मायावी है, निर्लज्ज है, गृद्ध है, प्रद्वेष करने
छिज्जंतु, साहाओ विच्छिज्जंतु, एवं काउलेसा। चउत्थो वाला है, शठ है, प्रमत्त है, रस-लोलुप है, सुख का गवेषक है, आरम्भ से अविरत है, क्षद्र है, बिना विचारे
भणति-गोच्छा छिज्जंतु, एसो तेऊए । पंचमो भणति
आरोभित खामो धुणमो वा जेण पक्काणि पडंति ताणि कार्य करने वाला है जो इन सभी से युक्त है, वह नील लेश्या में परिणत होता है।
खामो, एसो पीताए। छट्ठो भणति - सयं पडिताणि
पभूताणि ताणि खामो, सो सुक्काए। कापोत लेश्या के परिणाम
(आवचू २ पृ ११३) जो मनुष्य वचन से वक्र है, जिसका आचरण वक्र है,
छह व्यक्ति एक साथ घूमने निकले । उन्होंने परिपक्व माया करता है, सरलता से रहित है, अपने दोषों को
फलों के भार से झुका हुआ एक जामुन का वृक्ष देखा। छपाता है, छद्म का आचरण करता है, मिथ्यादृष्टि है, उनकी जामन खाने की इच्छा हई। एक व्यक्ति ने कहा अनार्य है, हंसोड़ है, दुष्ट वचन बोलने वाला है, चोर है,
-वृक्ष को मूल सहित भूमि पर गिरा देना चाहिए। मत्सरी है जो इन सभी प्रवृत्तियों से युक्त है, वह तब दूसरे व्यक्ति ने कहा-वक्ष को गिराने से क्या ? बडीकापोत लेश्या में परिणत होता है।
बड़ी शाखाओं को काट लेना चाहिए। तीसरे ने कहातेजोलेश्या के परिणाम
शाखाओं को नहीं, प्रशाखाओं को काटना चाहिए । चौथे ___ जो मनुष्य नम्रता से बर्ताव करता है, अचपल है, ने कहा-हमें फलों के गुच्छों को तोड़ना चाहिए । पांचवें माया से रहित है, अकुतूहली है, विनय करने में निपुण ने कहा--गुच्छों को क्यों ? हमें तो केवल फल ही तोड़ने
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