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(ज) इस निबंध का मूल बंगाली से हिन्दी में अनुवाद मेरे मित्र व्याख्यान-दिवाकर, विद्याभूषण, पंडित श्री हीरालाल जी दूगड़; न्यायतीर्थ न्यायमनीषी स्नातक ने किया है। अनुवाद करते समय स्थान स्थान पर ज्ञानवर्धक प्रामाणिक टिप्पणियां दे कर उन्होंने लेख के महत्त्व को वृद्धिगत किया है। इस प्रकार यह सोने पर सुहागे का काम हो गया है। परिशिष्ट रूप में जैन मूर्तियों के विषय में खोजपूर्ण लेख लिखकर अनुवादक महोदय ने ग्रंथ की महत्ता दुगुनी कर दी है । पंडित जी का साहित्यिक प्रयास' जैनधर्म के अध्ययन के प्रति उनकी रुचि व सत्यान्वेषणात्मक दृष्टि स्तुत्य है। साथ में अंग्रेजी का लेख "Jaina Antiquities in Manbhum" इस पुस्तिका के महत्त्व को और भी चारचांद लगाता है।
मैं समझता हूं कि इस पुष्प में सागर को गागर में भर दिया गया है। श्री वल्लभ सूरि स्मारक निधि बम्बई इस विषय में वधाई की अधिकारिणी है। मुझे विश्वास है इस पुस्तक का हिन्दी साहित्यिक क्षेत्र में अच्छा सन्मान होगा।
) प्रोफेसर पृथ्वीराज जैन एम० ए०, शास्त्री, अम्बाला शहर श्री आत्मानन्द जैन कालिज अम्बाला शहर २०-६-१९५८ संयुक्त मंत्री-श्री आत्मानन्द जैन
महासभा पंजाब ।