Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 16
________________ और देवमंदिर भी सैंकड़ों की संख्या में थे। ‘जैनधर्म सम्बंधी इम ने कुछ भी उल्लेख नहीं किया । संभवतः बौद्धधर्म के समान जैनधर्म का भो उस समय तक कामरूप में प्रचार न हुआ हो । ८. समतट-(श्रीहट्ट आधुनिक सिलहेट-त्रिपुरा आदि प्रदेश) कामरूप से दक्षिण दिशा को यात्रा करने के बाद ह्य सांग समतट में आया। यहां पर बौद्ध तथा अबौद्ध उभय संप्रदायों को मानने वाले लोग वास करते थे। तीस से अधिक बौद्ध संघाराम थे एवं उन में प्रायः दो हजार भितु वास करते थे। ये सब भिक्षु स्थविर संप्रदाय के अनुयायी थे। भिन्न भिन्न संप्रदायों के प्रायः एक सौ देवमंदिर थे किन्तु निग्रंथों की संख्या ही सम से अधिक थी। समता की राजधानी (कमांत, कुमिला के निकटवर्ती बड़कामता) के समीप एक स्तूप था। ह्य"सांग के मतानुसार उसे सम्राट अशोक ने निर्माण करवाया था। एवं इसी स्थान पर बुद्ध देव ने सात दिन धर्म प्रचार किया था। ६. ताम्रलिप्ति-(मेदिनीपुर अंतर्गत आधुनिक तमलूक) समतट से पश्चिम दिशा में यात्रा कर ह्य सांग ताम्रलिप्ति में आया। यहां पर दस बौद्ध संघाराम थे तथा उन में प्रायः एक हजार बौद्ध भिक्षु वास करते थे। देवमंदिर पचास से अधिक थे। तात्रलिप्ति नगरी के समीप एक स्तूप था। तथा ह्य सांग के मतानुसार इसे भी सम्राट अशोक ने बनवाया था। १०. कर्ण सुवर्ण-(मुर्शिदाबाद जिला) समतट से उत्तर दिशा की यात्रा कर वह कर्ण सुवर्ण में आया। यहां पर दस बौद्ध संघाराम थे और उन में दो हजार से अधिक बौद्ध भिक्षु निवास करते थे। ये

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