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इन्हीं समस्त प्रमाणों द्वारा स्पष्ट ज्ञात होता है कि वर्धमान ने स्वयं ही बंगालदेश में धर्म प्रचार किया था । तथा उत्तरवर्ती काल में जैनधर्म ने बंगाल में विशेषतया आदर पाया था । इस लिये बंगाल के जनपदों ने जैन साहित्य में इतना प्रधान स्थान प्राप्त किया है ।
एवं इन धर्मों राढ़ के अन्तर्गत
ध्यान में रखने की बात है कि में राढ़देश में अर्थात् पश्चिमबंगाल अन्दोलन खूब प्रबलता से दिखलाई दिया था में प्रबल प्रतियोगिता का सूत्रपात हुआ था । सुम्ह जनपद में सेदक (अथया देसक) नगर के निकट बुद्धदेव ने धर्म का अचार किया था तथा राढ़ के अन्तर्गत वज्रभूमि ( अथवा परिणत भूमि ) में वर्धमान एवं गोसाल ने अपने अपने धर्म का प्रचार किया था । कहना होगा कि इस प्रतियोगिता ( संघर्ष ) में बौद्धधर्म को हार खानी पड़ी और जैनधर्म विजयी हुआ । संभवतः इसी लिए बौद्ध साहित्य बंगालदेश के लिये इस प्रकार मौन था तथा जैन साहित्य इस देश के आर्यव अथवा क्षेत्रियत्व के सम्बन्ध में इस प्रकार जागृत है । राढ़ के अन्तर्गत जिस वज्रभूमि में वर्धमान तथा गोसाल ने वास किया था वह वज्रभूमि कहां अवस्थित श्री अभी तक विद्वान लोग इस बात का निश्चय नहीं कर पाये । हम लिख चुके हैं कि जैन " प्रज्ञापणा सूत्र" के मतानुसार राढ़ की राजधानी कोटिवर्ष थी। कोटीवर्ष आधुनिक दीनाजपुर जिले के अन्तर्गत था । अतएव उस समय राढ़ का विस्तार दिनाजपुर तक था | किन्तु उस समय बंगाल की राजधानी आधुनिक राढ़ के
पर
अन्तर्गत
ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी में अन्य धर्मों का