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प्रवेश किया दस बारह बौद्ध
ई० स० ६३८ को ईरण पर्वत नामक देश में (Walter II, 178 and 335 ) । यहां पर इस ने संघाराम तथा चार हजार से अधिक बौद्ध भिक्षु देखे । इन में अधिकांश हीनयान संप्रदाय के सम्मिति शाखा के अनुयायी थे । पौराणिक ब्राह्मण धर्म के विभिन्न संप्रदायों के बारह देवमन्दिर भी उस ने देखे थे । यहाँ पर ह्य्सांग ने एक किया था ।
वर्ष तक वास
संख्या
भी दो जैनों के सम्बन्ध
४. चम्पा - ( भागलपुर जिला ) देश में आया। यहां पर भी अनेक अधिकांश ध्वंस दशा प्राप्त कर चुके वाले भिक्षु सभी हीनयान पंथी थे । अधिक थी । देवमन्दिर प्रायः बीस थे । में इस ने कुछ नहीं लिखा । किन्तु उस समय चम्पा में जैन धर्मावलम्बी नहीं थे ; ऐसा मानना ठीक नहीं है । क्योंकि ह्यू सांग बौद्ध था, इसलिये उस ने बौद्धधर्म का ही विशेषतया वर्णन कर अन्य संप्रदायों के सम्बन्ध में संक्षिप्त उल्लेख मात्र किया है । ऐसी अवस्था में उस की मौनता से ऐसा निश्चित करना उचित नहीं है । यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि आधुनिक काल मन्दिर है ।
में भी भागलपुर शहर में एक प्रसिद्ध जैन
ईरण पर्वत से
यह चम्पा
बौद्ध संघाराम
थे
किन्तु
थे । तथा इन में रहने सौ से कुछ
५. कजंगल - (आधुनिक राजमहल ) ह्य ं सांग चम्पा से कजंगल में आया । यहां पर उसने छः सात संघाराम तथा तीन सौ से अधिक
* चम्पापुरी में श्री वासुपूज्य भगवान् जैनों के बारहवें तीर्थंकर का अति प्राचीन जैन मन्दिर है । (अनुवादक)