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ह्य सांग के विवरण से जाना जाता है कि ईसा की सातवीं शताब्दी में पूर्व भारतवर्ष में जैनधर्म यथेष्ठ प्रबल था। उक्त चीनी यात्री बौद्ध था, इस लिये उस ने बौद्धधर्म का ही विस्तृत विवरण दिया है। जैन व ब्राह्मणधर्म सम्बन्धी संक्षिप्त विवरण दे कर ही कार्य निपटाया है तथापि देखा जाता है कि वैशाली, पौंड्रवर्धन, समतट एवं कलिंग इन चार प्रदेशों में जैन संप्रदाय की संख्या ही सब से अधिक थी। मगध में भी बहुत जैन थे। इस के अतिरिक्त (बंगाल के) अन्यान्य प्रदेशों में यथेष्ठ सं या में जैन नहीं थे ऐसा मानना यथार्थ मालूम नहीं होता। इन सब प्रदेशों में (उपरोक्त चार प्रदेशों की अपेक्षा) जैनों की संख्या कम होने के कारण ह्य सांग मौन रहा हो ऐसा ज्ञात होता है। - ब्राह्मणधर्म संप्रदायों के सम्बन्ध में भी वह मौन सा ही है, क्योंकि किस प्रदेश में कितने देवमन्दिर थे इतना ही केवल उल्लेख किया है। किस संप्रदाय की कितनी जनसंख्या एवं किस
यद्यपि चीनी यात्री ने निग्रंथों का अन्य स्थानों पर विशेषतया वर्णन नहीं किया, तथापि जहां कहीं वह यह उल्लेख करता है कि बौद्ध धर्म के साथ साथ अन्य धर्म भी प्रचलित थे, वहीं समझना चाहिये कि जैन-संप्रदाय भी उनमें से. एक था । उसकी चुप्पी का यह अर्थ नहीं लगाना चाहिये कि पूर्वो भारत तथा बंगाल के दूसरे भागों में जैन न थे। जैसे कि राजगृह के वर्णन में ह्य सांग ने जैनों का कोई वर्णन नहीं किया परन्तु उस ने विपुल पर्वत की चोटी पर एक स्तूपं के समीप कई निग्रंथों को देखा था। राजगृह जैनों का बहुत बड़ा. तीर्थ स्थान है तथा. बहुत परिमाण में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां इस स्थान पर आसपास बिखरी हुई मिलती हैं वैभार गिरिपर अनेक जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां सुरक्षित हैं। तथा जैसे राजगृह बौद्ध साहित्य ... सद्ध है वैसे ही जैन साहित्य में भी प्रसिद्ध है। (अनुवादक)