Book Title: Bangal Ka Aadi Dharm
Author(s): Prabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
Publisher: Vallabhsuri Smarak Nidhi

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Page 20
________________ & संप्रदाय के कितने मंदिर थे, इस विषय में वह सर्वथा मौन है । तथापि उस समय: बंगालदेश में ब्राह्मणधर्म के कौन कौन से संप्रदाय विद्यमान थे, इस विषय की थोड़ी बहुत सामग्री तो अवश्य ही हमारे पास है । इस लेख में इस विषय पर विस्तृत आलोचना करने को हमारे पास स्थान नहीं है । तथापि संक्षेप से दो चार प्रमाण दे कर ही बस करेंगे । हम जानते हैं कि कर्णसुवर्ण का अधिपति शशांक शैव धर्मानुयायी था, तथा उस का परमशत्रु एवं कर्णसुवर्ण विजेता कामरूप राजा भास्कर वर्मन भी शिवोपासक था। किन्तु कर्णसुवर्णंपति जयनाग परम भागवत अर्थात् वैष्णव था T) (E.P. Ind. XVIII. P. 6 3) む • है वे वैष्णव थे | बंगाल में जिन गुप्त सम्राटों ने राज्य किया उन के शासनकाल में ब्राह्मण धर्म का बंगाल में खूब प्रचार हुआ था। इस बात की सत्यता का यथेष्ट प्रमाण उस समय के ताम्रपत्र आदि ऐतिहासिक सामग्री है। उन लोगों के शासन कोल में बंगालदेश में बहुत देवमन्दिर प्रतिष्ठित हुए थे । इस बात की पुष्टि के लिये अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं । दामोदरपुर से प्राप्त ताम्रपत्रों (चौथे और पांचवें) से जाना जाता है कि सम्राट बुद्धगुप्त ( ई० स० ४७७, से ४६६) एवं तृतीय कुमारगुप्त ( ई० सं० ५४३) के राज्यकाल में पौंड्रवर्धन- भुक्ति में कोकामुख स्वामी के लिये एक तथा श्वेतवराह स्वामी के लिये दो मन्दिर निर्माण किए गये थे । शुशुनिया पर्वत लिपि (E.P. Ind. XIII 133 ) से ज्ञात होता है कि ईसा की चतुर्थ शताब्दी में पुष्करणा (बांकुड़ा जिल। अन्तर्गत वर्त्तमान पोखरण नामक ग्राम) का अधिपति चन्द्रवर्म्मन चक्रस्वामी ( अर्थात विष्णु) का उपासक था । :

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