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(बौद्ध) भिक्षु एवं दस देवमंदिर देखे थे। जैन संप्रदाय सम्बन्धी स ने कुछ भी उल्लेख नहीं किया ।
६. पौंड्रवर्धन - ( उत्तर बंगाल ) ह्या सांग कजंगल से पौंड्रवर्धन में आया। यहां पर इसने बीस संघाराम तथा तीनहजार से अधिक बौद्ध भिक्षु देखे । इन में से अधिकतर हीनयान पंथी थे । शेष महायान पंथी थे । प्रायः एक सौ देवमंदिर थे एवं ब्राह्मण धर्मावलम्बी भिन्न भिन्न संप्रदायों में विभक्त थे । परन्तु निग्रंथों (अर्थात् जैन धर्मीवलम्बियों ) की संख्या ही सब से अधिक थी ।
पौंड्रवर्धन नगर से कुछ दूर पर एक स्तूप था ह्य ू सांग ने लिखा है कि यह स्तूप अशोक ने निर्माण करवाया था एवं भगवान तथागत बुद्ध ने इस स्थान पर तीन मास निवास कर धर्म प्रचार किया था ।
७.
कामरूप - (आसाम के अन्तर्गत गोहाटी प्रदेश) चीनी यात्री पौंड्रवर्धन से पूर्व की यात्रा कर एक बड़ी नदी ( करतोया) को पार कर कामरूप राज्य में पहुँचा । उस ने लिखा है कि "कामरूप के निवासी सभी देवोपासक हैं । कामरूप में बौद्धधर्म का प्रचार कभी भी न हो सका तथा कामरूप में एक भी बौद्धसंघाराम नहीं बना । जो बौद्धलोग कामरूप में निवास करते थे वे लोग गुप्त रीति से धर्मोपासना करते थे ।" किन्तु ब्राह्मण धर्म के प्रत्येक संप्रदाय के अनुयायियों की संख्या अत्यधिक थी
*जैन मुनि निर्ग्रथ के नाम से प्रसिद्ध थे । जिस का अर्थ "गांठ बिना” अर्थात् राग-द्वेष की गांठ के बिना का होता है (Uttradhyayna Lecture Adhyayna XII 16, XVI 2. Acaranga, Pt II, Adhyayna III, 2 and Kalpa-Sutra Sut 130 etc.) (अनुवादक)