Book Title: Sagarotpatti
Author(s): Suryamal Maharaj
Publisher: Naubatrai Badaliya

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Page 29
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) श्रुत बलसे प्रसिद्ध दिगम्बराचार्य रहते थे। अभिमान पूर्वक स्व-पतकी पुष्टिके लिये वह उनसे विवाद करनेके लिए खड़ा हुमा और प्रण किया प्रजेताको विजेता को शिष्यता स्वीकार करना होगा। अन्य था, उसे गर्दभ (गदहा) पर चढ़ा कर गांव की परिक्रमा कराई जायगी। पण्डितों के समक्ष वाद बिबाद में, दिगम्बरियों के प्रश्नोत्तरके विचारमें हार कर भी जगतचन्द्रने उनकी शिष्यता स्वीकार न की। श्वेताम्बरीय सङ्घने तपौष्ट्रिक और तुद्र बालक तथा निन्दक समझ अपने सङ्घसे वहिस्कृत कर दिया । परन्तु, दिगम्बरोय सङ्घवालोंने पण्डितों की राय से उसे गर्दभ पर चढ़ा कर गांवका परिभ्रमण कराया और हंसी के बतौर जगत्चन्द्र को वह गर्दभ विरुद ( उपहार ) में दे दिया। कालामुख हो स्तम्भन पुरमें जाकर अपने भक्तोंके सामने अपनो उत्कर्षता दिखाते हुए उसने गर्जना शुरू किया । उसने कहा कि दिगम्बरियों को पराजित कर उसने गर्दभ विरुद पोया है। इस बातको सत्यताको जानते हुए भो, उनके भक्तों ने उनका आदर किया । ___ जगत्चन्द्र अपनी पाताके गर्भ दोषसे पिथ्यावादी एवं प्रपञ्ची था। वह हृदयसे उदास होकर अपने गुरुके सन्निकट गया : गुरुने उसे दुश्चरित्र जान उसको रक्षा न को। तत्पश्चात, उसने वस्तुपाल नामक एक वणिकसे मैत्री करली । For Private And Personal Use Only

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