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( ३६ ) पकड़े गए और कब ( गोर) खोदनेके काममें प्रवृत्त किये गये तब से किसी भी मृतक मुसलमान के लिये कबर खोदना हो इनका काम था। तभी से धर्मसागर की शाखा गोर खोदिया नामसे पुकारी जानेलगी। पश्चात् तपा शब्द जोड़ दिया गया। रासभ पर चढ़नेसे रासमियां शाखा हुई। इतना होने पर भी इसने अपना दुराचरा न छोड़ा। तत्पश्चात् गुरु निन्दक धर्म सागर स्वानुकूल आत्मीय शिष्योंके साथ उज्जैन चला गया। वहाँ उसने मौसमद्याहारी बाम मार्गियोंसे तथा कापालिकोंसे मैत्री कर मन्त्राराधन किया। कालिकाके प्रभावसे मारण, उच्चाटनादि मन्त्रोंको सिद्ध कर, कर-मन्त्रों द्वारा बाममागियों से भी उसने कलह ठानी। अतएव बाममागियोंने उसे काक, उलक और तपादि पदबियों से विभूषित किया । ____ कुछ दिनोंके पश्चात्, शुद्ध संयमी विजय दान सूरिजी अपने पुत्र हीरविजय जी को गद्दी देकर स्वर्गबासी हुए । यह सुन धर्म सागरने इनके गण को फोड़ कर (विलय) मारणोच्चाटनादि मंत्रों से इन्हें दुःख दिया। हीर विजयजो प्रतिकार करने में असमर्थ थे। अतएव उन्हें इन अत्याचारों को सहना पड़ा। रासभ-रासमो के शाक्रमण सदृश इसका आक्रमण देख हीर वियजीने इन्हें रासभी पदवी दी। समय पाकर हीर विजयजी ने समर्थ होकर इसके दुराचार, दुराक्रमण तथा मन्त्राभिचार को देख इसे गच्छसे वहिश्कृत कर दिया। उस मुर्खने क द्ध हो दुवुद्धिसे अपने मूर्खा शिष्यों सहित निषिद्ध, असत् निरूपण करना शुरू किया।
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