Book Title: Sagarotpatti
Author(s): Suryamal Maharaj
Publisher: Naubatrai Badaliya

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Page 32
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (:२७ ) इन्हें निम्नांकित शक्तियां प्रदान कीः- पेरुसी स्थिरता, समुद्र सी अगाधता पृथ्वीसी सहन-शक्ति, सोपसी शीतलता और सूर्य सास्खलित तेज। इन्होंने शुभ मंत्रोंद्वारा पैतालको आधीन कर उत्तय सत्पुरुषकी साधनाकी। इनमें सबसे प्रसिद्ध महात्मा श्री बिजयेन्द्र मूरि हुए । इनके हस्तावलम्बनसे (१) श्री बब्रसेन मूरि एवं, पदमचंद यति तथा (ग) श्री क्षेमकीति मूरि नामक तीन शिष्य हुए। विज्ञवर श्री क्षेप कीर्तिजीने लोकोषकारार्थ वृति कल्प नापक ग्रन्ध बनाया । ___ वृति कल्प ग्रन्थका निर्माण श्री विक्रम सम्बत् १३३२ ज्येष्ठ शुक्ल दशमी, रविवार हस्त नक्षत्रमें हुआ था। उस समय श्री देवेन्द्र सरि जी भी विद्यमान थे। पुनः श्री धर्मरत्नकी टीका की प्रशस्तिमें लिखा है कि चैत्रबाल गच्छ में क्रमशः श्री भुवनचन्द्र जी हुए । इनका तेज समस्त संसार का हितैषी हुओ। शान्त वृति, विनेता पूज्य श्री देवभद्र गणिराज जी उनके शिष्य हुए। स्वर्ण वर्ण, शुद्ध, तेजशील महात्मा यति, लोक प्रसिद्ध हुए। इनके चरण कमलकी सेवा द्वारा शुद्ध चित्त, शुभवोध, काम क्रोध विजयी जगत प्रसिद्ध श्राजगच्चन्द्र सरिजीकी जय हो! जगत सिद्ध, यति पूज्य श्रेष्ठ (क) देवेन्द्रसरि तथा श्रो बिजयचन्द्र सरि नामक इनके दा शिष्य थे। श्री देवेन्द्र For Private And Personal Use Only

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