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( २३ ) उनके शिष्य देवेन्द्र, क्षेम, कीरयादि द्वारा प्रणित ग्रन्थोंमें उनका तपा नाम कहीं नहीं पाया जाता । इससे सिद्ध होता है कि पूर्व शिष्यों का कथन सर्वथा असत्य है अन्यथा अपने ग्रन्थोंमें तपा नाम उन्होने अवश्य अङ्कित किया होता । अतएव विद्वान मण्डली तपा नामकी निरुक्ति तथा शिष्यों द्वारा अलंकृत तपा के विषय में परिज्ञान करेगी। अर्थात् तपा पदवी को कल्पित ही स्वीकार करेगी।
श्री जगत चन्द्रजोने भागते समय श्री बालचन्द्रजीसे कहा था कि पाक्षिकादि प्रतिक्रपणों में वह उनकी की हुई उनके पूज्यों को स्तुति करेगा। परन्तु श्री बालचन्द्र ने कुछ यतियों द्वारा गुप्तभावसे रक्षित होकर भी अपने गुरु-वाक्योंका पालन नहीं किया । अतः परकर वह व्यन्तर देव हुआ और प्रतिदिन उसने संघमें उपद्रव पचाना प्रारम्भ किया इस दुष्टको व्यति कर देख उन्होंने पाक्षिकादि प्रतिक्रमणामें स्नोतस्य तथा सकलाईतको विघ्न शान्तिके लिए स्थापनाकी। उसी भयसे आजतक चाण्डालिक मतानुयायियोंने इस पद्धतिको जारी (प्रचलित) रक्खा है। तभीसे उनकी की हुई स्तुतिका पाठकरना संसार में प्रसिद्ध हुआ। क्योंकि चाण्डालिक पतानुसार उनके बिना पातिक प्रतिक्रमण हो ही नहीं सकता। ___एक समय श्री जगतचन्द्र चित्रकूटमें गया। वहां विद्या
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